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राजस्थान : तालाब को 'भागीरथी' मानकर गंदे पानी से सींच रहे जीवन की डोर

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Published : Jun 28, 2020, 9:02 PM IST

नहरी परियोजना को राजस्थान नागौर की भागीरथी कहा जा रहा है. इस परियोजना के मुख्य कार्यालय और डैम से महज छह किमी दूर सिंगड़ गांव के लोग महंगे दाम पर टैंकर से पानी मंगवाने को मजबूर हैं. गांव की अधिकांश गरीब जनता को तालाब के गंदे पानी से प्यास बुझानी पड़ रही है. तालाब से एक घड़ा पानी लाने के लिए महिलाओं को पांच-सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

Forced to drink muddy water
गदला पानी पीने को मजबूर

जयपुर : 'समंदर के करीब होकर भी प्यासा रहना' यह कहावत राजस्थान के नागौर जिले के सिंगड़ गांव के लोगों पर सटीक बैठती है. जिले में नहरी पानी की आपूर्ति का जिम्मा संभालने वाली नहरी परियोजना का मुख्य कार्यालय नागौर-गोगेलाव के बीच है.

नहरी विभाग के अधिकारियों का दावा है कि जिले के 12 शहर-कस्बों और 750 से ज्यादा गांवों में नहरी पानी की सप्लाई दी जा रही है. लेकिन अपने मुख्य कार्यालय से महज छह किमी दूर स्थित सिंगड़ गांव में घर-घर नहरी पानी की सप्लाई अभी तक यह अधिकारी नहीं पहुंचा पाए हैं.

गंदा पानी पीने को मजबूर

इस गांव में घर-घर नहरी पानी की आपूर्ति अभी दूर की कौड़ी लग रही है. फिलहाल, नहरी विभाग ने गांव के बाहर हाइवे के किनारे एक हाइड्रेंट लगा रखा है, जिसमें हर दूसरे दिन पानी सप्लाई किया जाता है.

ग्रामीणों का कहना है कि जितनी सप्लाई मिलती है, उससे पूरे गांव के लोगों की जरूरत पूरा करना बहुत मुश्किल है. इसके अलावा रोजमर्रा की जरूरत के लिए जो पानी चाहिए, उसे लेने के लिए ग्रामीणों को दिक्कतों का सामना करते हुए हाइवे पार कर जाना पड़ता है. इससे हमेशा हादसे का अंदेशा रहता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण
जून की तपती गर्मी में प्यास बुझाने के लिए फिलहाल सिंगड़ गांव के लोगों के पास दो विकल्प है. तालाब का गंदा पानी पीना या महंगे दाम पर टैंकर से पानी मंगवाना. ग्रामीणों का कहना है कि जो समर्थ हैं. वह तो 700-800 रुपए देकर टैंकर मंगवा लेते हैं. लेकिन गरीब लोगों के पास तालाब का गंदा पानी पीने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसके लिए भी गांव की महिलाओं को पांच-सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

महिलाओं को 5-7 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

नागौर शहर से करीब 14 किमी दूर इस गांव की आबादी आठ हजार के आसपास है. पहले जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग जीएलआर के माध्यम से पानी की आपूर्ति करता था. लेकिन नहरी विभाग की ओर से हाइड्रेंट लगाने के बाद यह व्यवस्था भी बंद कर दी गई है. फिलहाल नहरी विभाग हाइड्रेंट पर हर दूसरे दिन पानी की आपूर्ति करता है, जो ग्रामीणों के लिए पर्याप्त नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि हाइड्रेंट पर जो सप्लाई मिलती है. उससे सभी लोगों की प्यास नहीं बुझ सकती.

पानी भरने को लेकर विवाद की स्थिति
आए दिन हाइड्रेंट से पानी भरने को लेकर ग्रामीणों में आपसी विवाद की स्थिति बन जाती है. वहीं, जो लोग सक्षम हैं वह टैंकर से महंगे दाम पर पानी मंगवा लेते हैं. लेकिन अधिकांश गरीब ग्रामीणों के लिए टैंकर से पानी मंगवाना संभव नहीं है. गांव के बाहर एक ही तालाब है. लेकिन इसका पानी पूरे साल नहीं चल पाता है. इस बार भी इस तालाब का पानी सूख गया था. लेकिन पिछले दिनों हुई बारिश से तालाब में थोड़ा पानी एकत्रित हुआ है. अब ग्रामीणों के लिए इस तालाब का गंदा पानी ही प्यास बुझाने का एकमात्र जरिया है.

महिलाएं पांच-दस किमी का सफर पैदल तय करके सिर पर पानी का घड़ा लाने ले जाने के लिए मजबूर हैं. कहने को तो गांव में अलग-अलग जगहों पर पानी सप्लाई के लिए नल भी लगाए हुए हैं. जहां से आसपास के लोग पानी भरकर ले जा सकते हैं. लेकिन कई बरसों से इन नलों से एक बूंद भी पानी नहीं टपका. ऐसे में गांव में पांच से छह जगह लगे यह नल भी नकारा साबित हो रहे हैं.

गंदा पानी पीने को मजबूर

वहीं, अब ग्रामीणों को अपने साथ ही पालतू जानवरों की प्यास बुझाना भी भारी पड़ रहा है. नहरी विभाग हाइड्रेंट के माध्यम से जो पानी की सप्लाई दे रही है. उसका भी बिल ग्रामीणों को देना पड़ रहा है. बकायदा इसके लिए गांव के लोगों की एक कमेटी भी बनी हुई है. अब ग्रामीणों का कहना है कि नहरी पानी की सप्लाई हर दूसरे दिन आधे घंटे के लिए होती है. जिससे महज पांच-सात टैंकर ही भरे जा सकते हैं. लेकिन इससे पूरे गांव के लोगों की प्यास बुझाना संभव नहीं है. इसलिए जब घर-घर पानी नहीं पहुंच रहा है, तो बिल किस बात का जमा करवाएं.

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घर तक पानी पहुंचाने की मांग
सिंगड़ ग्राम पंचायत में दो गांव हैं. सिंगड़ और गोगानाडा. इन दोनों ही गांवों के ग्रामीणों की यह मांग है कि उन्हें घर तक नहरी पानी की सप्लाई दी जाए. ग्रामीण बताते हैं कि सिंगड़ से छह किलोमीटर दूर स्थित गोगेलाव गांव और आठ किलोमीटर दूर बासनी गांव में नहरी पानी की घर-घर सप्लाई दी जा रही है. फिर उनके गांव के साथ सौतेला बर्ताव क्यों किया जा रहा है.

गांव की महिलाएं बताती हैं कि पेयजल की किल्लत इस गांव की सबसे बड़ी समस्या है. इसका स्थाई समाधान होना चाहिए. इसके लिए गांव में पाइप लाइन बिछाकर घर तक पानी पहुंचाने से ही इस समस्या का हल निकल सकता है. नहर परियोजना के अधीक्षण अभियंता अजय शर्मा का कहना है कि जिले के 12 शहर-कस्बों और 750 से ज्यादा गांवों को नहरी परियोजना से जोड़ा जा चुका है.

राज्य सरकार के निर्देश पर बाकी बचे गांव-ढाणियों को भी नहरी परियोजना से जोड़ने का मसौदा तैयार किया गया था. अब केंद्र सरकार की हर गांव ढाणी में घर-घर पानी पहुंचाने की 'जनता जल मिशन' योजना आई है. जिसमें कुल लागत की 50 फीसदी राशि केंद्र सरकार की ओर से देने का प्रावधान है. इसलिए नया मसौदा बनाया जा रहा है. जिस पर इस साल के अंत में काम शुरू होना है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो साल 2022 तक नागौर जिले के हर गांव-ढाणी में घर-घर नहरी पानी की सप्लाई हो जाएगी.

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