नई दिल्ली : विजय दिवस के अवसर पर भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स की 5वीं बटालियन (नेपियर्स) का हिस्सा रहे सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर बीके खन्ना से ईटीवी ने खास बातचीत की. हमने उनसे युद्ध के ऐसे किस्सों को याद करने को कहा जो चर्चा में आने से अछूते रह गए.
रिटा. ब्रिगेडियर खन्ना से बातचीत ब्रिगेडियर खन्ना ने बताया कि मुझे आज भी वह दर्दभरा दृश्य याद है जब 1971 की लड़ाई के दौरान एक सैनिक मशीन गन से पाकिस्तानी सैनिकों को मरते समय खुद बुरी तरह जख्मी को गया. मशीन गन के बैकफायर से उसकी आंते शरीर से बाहर आ गईं थीं और वह इस उम्मीद के साथ झूठ बोल रहा था कि वह ठीक हो जाएगा.
ब्रिगेडियर खन्ना ने बताया कि अन्य सैनिकों ने किसी तरह बाहर आ चुकी आंतों को फिर उसके पेट के अंदर डाल दिया. उसे उठाकर युद्ध क्षेत्र के पास एक शिविर में ले गए, उसके टांके लगे और भगवान की कृपा से उसे होश आ गया. ब्रिगेडियर का कहना था कि 1971 के युद्ध में ये एक चमत्कार था, हमने कतई नहीं सोचा था कि जवान गुरुदेव सिंह जिंदा बचेगा.
यादगार था ढाका में जीत के जश्न में शामिल होना
ब्रिगेडियर खन्ना ने बताया कि 'मैं अगस्त, 1971 में नागालैंड में था और हमारी ब्रिगेड धर्मपुर, असम चली गई, जहां हमें दो महीने का प्रशिक्षण दिया गया और नवंबर के अंत में हम पाकिस्तान के चाय के बागानों में घुस गए. ये इलाका हमने तीन नवंबर को अपने कब्जे में ले लिया. रणनीति के बारे में उन्होंने चर्चा करते हुए बताया कि हम पहले से ही जानते थे कि 4 दिसंबर, 1971 को हमारे सैनिकों पर मंडराने वाले हेलीकॉप्टर भारतीय वायु सेना के होंगे.
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इसने हमें मौलवीबाजार और मेघना नदी को पार करके अधिक तेजी से पाकिस्तान के अंदर प्रवेश करने में मदद की. निर्दिष्ट क्षेत्रों पर कब्जा करने के बाद, हम अगरतला में वापस पहुंच गए तब हमें पता चला कि पाकिस्तान आत्मसमर्पण करने जा रहा है. 16 दिसंबर को जब पाकिस्तानी सेनाओं के प्रमुख जनरल नियाज़ी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ भारतीय सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तब फिर हम ढाका चले गए और जीत के जश्न में भाग लिया. ये पल यादगार है.