देहरादून: स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड का योगदान अहम रहा है. रुड़की शहर से कुछ दूरी पर स्थित सुनहरा गांव में मौजूद ऐतिहासिक वट वृक्ष ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म का साक्षी बना हुआ है. अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले 100 से अधिक क्रांतिकारियों को वट वृक्ष पर सरेआम फांसी दे दी गई थी.
1857 की क्रांति को भले ही देश की आजादी की पहली क्रांति कहा जाता हो, लेकिन अंग्रेजी गजेटियर के मुताबिक रुड़की में इस क्रांति की ज्वाला इससे काफी पहले ही भड़क उठी थी. अक्तूबर 1824 को कुंजा ताल्लुक में राजा विजय सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ पहला युद्ध हुआ था और इस दौरान अंग्रेजों को बड़ी क्षति हुई थी. इसके साथ ही कई स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर किए थे.
रुड़की के स्वतंत्रता सेनानी स्व. हकीम मोहम्मद यासीन के बेटे डॉ मोहम्मद मतीन का कहना है कि 1857 की क्रांति का बिगुल बजना शुरू हुआ तो ब्रिटिश हुकूमत में खलबली मच गई. आजादी के मतवालों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने इलाके में कत्लेआम का तांडव मचाया था. बताया जाता है कि सहारनपुर के ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट सर राबर्ट्सन ने 10 मई 1857 को रामपुर, कुंजा, मतलबपुर आदि गांवों के 100 से अधिक ग्रामीणों को पकड़कर इस पेड़ पर सरेआम फांसी पर लटका दिया था.
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रुड़की के सुनहरा गांव में मौजूद ऐतिहासिक वट वृक्ष 500 साल से अधिक ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म का साक्षी बनकर खड़ा हुआ है. स्थानीय लोगों की पहल के बाद वट वृक्ष को शहीद स्मारक के रूप में स्थापित किया गया है, जो स्वतंत्रता संग्राम में रुड़की के शौर्य को दर्शा रहा है. डॉ मोहम्मद मतीन का कहना है कि उन्होंने अपने पिता से अंग्रेजी हुकुमत के जुल्म और देशवासियों के बलिदान की गाथा सुनी थीं. जो आज भी उनके मन में रह-रहकर याद दिलाती रहती है.
ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह भी उल्लेख है कि ब्रिटिश हुकूमत के खौफ के चलते आसपास के लोग गांव छोड़कर चले गए थे. साल 1910 में स्वतंत्रता सेनानी स्व. ललिता प्रसाद ने इस वटवृक्ष के आसपास की जमीन को खरीदकर इसे आबाद किया था. उसके बाद यहां मंत्राचरणपुर गांव बसाया गया, जो बाद में सुनहरा के नाम से जाना गया.
इस दौरान एक कमेटी का गठन भी किया गया था. शहीदी यादगार कमेटी के अध्यक्ष डॉ मोहम्मद मतीन बताते हैं कि वटवृक्ष के नीचे शहीद हुए आजादी के दीवानों की याद में 10 मई 1957 को स्वतंत्र भारत में पहली बार विशाल सभा का तत्कालीन एसडीएम बीएस जुमेल की अध्यक्षता में हुआ था. जिसमें शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई है. उसी दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हकीम मोहम्मद यासीन की अध्यक्षता में शहीद यादगार कमेटी का गठन किया गया था.