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आज भी छुआछूत की बेड़ियों में जकड़ा है 21वीं सदी का हमारा भारत - dalits saloon bengaluru

सदियों पहले बासवन्ना और कनकदास जैसे दार्शनिकों ने समाज से जाति व्यवस्था को हटाने की कोशिश की और एकता में रहने का आग्रह किया. लेकिन 21वीं सदी में भी हमारे बीच एकता होना संभव नहीं है. हम जातिवाद के उस घोर अंधकार से घिरे हुए हैं, जहां दूर-दूर तक सिर्फ अंधकार ही है. हमें उजाला चाहिए...

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

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Published : May 19, 2020, 6:37 PM IST

बेंगलुरु : हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. हम कपड़ों से तो आधुनिक हो चुके हैं, लेकिन मन से अब भी जातिवाद की बेड़ियों को तोड़ नहीं पाए हैं. ऐसी ही एक सच्ची घटना राजधानी से सटे रामनगर की है. यहां के सैलून में दलितों का आना वर्जित है.

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के निकट रामनगर में अगर घोर छुआछूत और जातिवाद पनप रहा तो उसे हम क्या कहेंगे. यह 21वीं सदी में रहने वालों के लिए बेहद शर्मिंदगी वाली बात है.

जानकारी के अनुसार रामनगर में, जो कि राजधानी बेंगलुरु के बहुत निकट है, लोग अभी भी इन अछूत संस्कृतियों का पालन कर रहे हैं.

रामनगर के नांजापुरा गांव में दलित सैलून की दुकान में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि वे अछूत हैं. इस गांव में बस दलित समुदाय में जन्म लेने के कारण एक नाई उनके बाल काटने और शेविंग करने से इनकार कर देता है.

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यह किस्सा रामनगर जिले का है. यहां नांजापुरा गांव घोर जातिवाद से पीड़ित है. इस गांव में दलितों के बाल नाई द्वारा नहीं काटे जाते. यहां कुछ दलित युवक सैलून में बाल कटवाने गए. उन्हें देखकर नाई अपनी दुकान तुरंत बंद करके घर चला गया.

सरकार समाज में जाति व्यवस्था को हटाने के लिए कई प्रयास कर रही है, लेकिन लोगों को बदले बिना समाज नहीं बदल सकता है. अगर लोग नहीं बदलेंगे तो जातिवाद को समाज से खत्म नहीं किया जा सकता है.

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