देहरादून : आजादी की अहमियत शायद आज की पीढ़ी उतना नहीं समझे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वालों को इसकी कीमत बखूबी पता है. ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष में तब अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले आजादी के मतवालों ने अपनी जिंदगियां भी दी और जवानी भी. उत्तराखंड के देहरादून में ओम कुमारी का संघर्ष भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. ओम कुमारी आज 93 साल की हो गईं हैं और संभवतः देहरादून शहर में वह एक मात्र फ्रीडम फाइटर हैं, जो प्रेरणा स्रोत के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं. स्वतंत्रता दिवस पर प्रेरणा देती ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
देश इस साल 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा, लेकिन 15 अगस्त के इस ऐतिहासिक दिन से पहले भारत छोड़ो आंदोलन की सालगिरह को भी याद किया गया. यह दिन देहरादून में रह रही ओम कुमारी के लिए बेहद खास है.
15 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में कूदी
साल 1927 में दिल्ली में जन्मी ओम कुमारी के जीवन को भारत छोड़ो आंदोलन ने बदलकर रख दिया था. भारत छोड़ो आंदोलन साल 1942 को शुरू हुआ जब ओम कुमारी की उम्र महज 15 साल की थी. इतनी छोटी उम्र में ही ओम कुमारी स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़ी थी. अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाली स्वतंत्रता सेनानी ओम कुमारी 93 बसंत देख चुकी हैं, लेकिन आज भी उनके दिमाग में उस समय की सभी यादें ताजा हैं.
सेना को देती थी अंग्रेजों की गुप्त सूचनाएं
स्वतंत्रता सेनानी ओम कुमारी ने अपनी सहेलियों के साथ आजादी की जंग में संघर्ष के कई दौर देखे. इस दौरान ओम कुमारी और उनकी सहेलियां गुप्त सूचनाएं आंदोलनकारियों तक पहुंचाती थी. अंग्रेजों की सूचनाएं सेनानियों तक पहुंचाने समेत संदेशों को एक जगह से दूसरे सेनानी तक पहुंचाने में भी उनकी युवा टीम ने अहम रोल निभाया.
देश की खातिर जेल भी गईं ओम कुमारी
ओम कुमारी उस समय की बातें याद करते हुए कहती हैं कि अपनी कुछ सहेलियों और क्लास टीचर के साथ उन्होंने अंग्रेजों का खूब विरोध किया. उनको मीटिंग नहीं करने देती थी. स्वतंत्रता सेनानी ओम कुमारी ने बताया की जब अंग्रेजों ने उनको जेल डाला था, तो वह आजादी के गानों को गाया करती थी. लगातार वह जेलों में भारत अंग्रेजों भारत छोड़ो और वंदे मातरम जैसे नारे जोर-शोर से लगाती थी.