लखनऊ : राम नगरी यानी अयोध्या को यूं ही नहीं धर्म और आस्था का केंद्र कहा जाता. यहां कई ऐसे भौतिक साक्ष्य हैं, जो इसे धार्मिक नगरी साबित करते हैं. ईटीवी भारत आपको अयोध्या के एक ऐसे ही जीते जागते साक्ष्य से रूबरू करा रहा है, जिसे आपने शायद ही कभी देखा या सुना होगा. दरअसल, राम नगरी में एक ऐसा वृक्ष मौजूद है, जिसके तने पर स्वत: ही राम नाम लिख जाता है.
कदंब प्रजाति का है वृक्ष
यह वृक्ष आज तक शोध का विषय बना हुआ है. बताया जाता है कि यह वृक्ष कदंब प्रजाति का है. इस वृक्ष से करीब 100 मीटर की दूरी पर ऐसा ही एक और वृक्ष था, जो सूख गया. इसके बाद यह वृक्ष खुद ही उग गया. इस रामनामी वृक्ष के तने पर खुद राम नाम उभर रहा है. मौजूदा समय में इसकी पत्तियां झड़ चुकी हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो इस वृक्ष की पत्तियों पर भी राम नाम लिखा रहता है.
इस वृक्ष पर नहीं बैठते बंदर
स्थानीय लोगों का कहना हैकि इस इलाके में बंदर आते हैं, लेकिन वह राम नामी वृक्ष पर नहीं बैठते. यह वृक्ष राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 के पास स्थित अयोध्या के तकपुरा गांव में है. जब लोगों को इस वृक्ष की जानकारी हुई, तब से यहां लगातार प्रतिदिन सफाई होती है और सुबह पूजा की जाती है. रामनामी वृक्ष के आसपास सफाई करने वाली स्थानीय महिला की मानें तो यह वृक्ष लंबे समय से इस गांव में है. पिछली कई पुस्तों से लोग इस पेड़ को देखते आ रहे हैं. इस गांव में नव विवाहित जोड़े यहां मत्था टेकने आते हैं. मान्यता है कि यह वही स्थल है, जहां से राम राज्य की राजधानी की परिधि शुरू होती थी. वाल्मीकि रामायण की मानें तो राम नामी वृक्ष ने अयोध्या की पुनर्स्थापना में मील का पत्थर का काम किया था.
क्या है रामनामी वृक्ष का महत्व?
शास्त्रों में लिखित तथ्यों पर गौर करें तो भगवान श्री राम के महाप्रयाण के बाद त्रेता युगीन अयोध्या उजड़ सी गई थी. इसकी पूरब पुनर्स्थापना ईसा से लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने की थी. बताया जाता है कि शिकार करने निकले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचे और वह थकान के कारण नदी के किनारे ठहरे थे. अचानक सुस्ती के कारण उन्हें नींद आ गई. स्वप्न में तीर्थराज प्रयाग ने अयोध्या में राम की जन्मभूमि चिन्हित करने का निर्देश दिया. महाराजा विक्रमादित्य ने तीर्थराज प्रयाग से प्रश्न किया कि अयोध्या उजड़ सी गई है और उसकी सीमा का पता कैसे लगाया जाएगा. इस पर तीर्थराज ने राम जन्मभूमि स्थल की जो स्थिति बताई वह आज भी ठीक उसी स्थल पर सिद्ध हुई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है.