पटना :इस बार बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास है. पहला जहां संक्रमण काल में पहली बार देश में आम चुनाव हो रहे हैं. जबकि, दूसरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार अपने चौथे कार्यकाल के लिए जनता के बीच हैं. इन सब के बीच जहां एनडीए स्किल डेवलपमेंट के जरिए आत्मनिर्भर बिहार का नारा दे रही है. वहीं, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव पहली कैबिनेट में ही 10 लाख स्थायी नौकरी का वादा कर रहे हैं. दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिहार के युवा इस बार आत्मनिर्भर बिहार के साथ चलने को तैयार होगें या फिर तेजस्वी के 10 लाख नौकरी के वादे पर ऐतबार करेंगे.
मिलेगा रोजगार या फिर केवल चुनावी शिगूफा!
बिहार का चुनाव हमेशा से सबसे ज्यादा रोचक और कई मायनों में अलग रहता है. यही वजह है कि बिहार के चुनाव पर पूरे देशभर की निगाहें टिकी रहती हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो देशभर में बिहार में सबसे अधिक बेरोजगार युवा हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में युवा मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं. युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एनडीए गठबंधन और महागठबंधन ने वादों की बौछार कर दी है. एक तरफ जहां नीतीश कुमार युवाओं को स्किल्ड बनाकर उन्हें नौकरी दिलाने की बात कर रहे हैं. वहीं, तेजस्वी ने युवाओं की सरकार और 10 लाख नौकरी देने का वादा कर नया दांव खेल दिया है.
'युवा मतदाताओं के कारण चुनाव परिणाम पर असर'
इस मामले पर सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार का कहना है कि बिहार में उद्योग धंधों की कमी की वजह से रोजगार हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. यही वजह है कि प्रदेश की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में राज्य के बाहर निवास करती है. उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद बिहार वापस लौटने वाले मजदूरों के आंकड़े ने सब कुछ उजागर कर दिया है कि कितनी बड़ी संख्या में बिहार के लोग अन्य राज्यों में नौकरी या फिर मजदूरी कर रहे हैं. संजय कुमार ने कहा कि आत्मनिर्भर बनकर अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेचना इतना आसान नहीं और बिहार जैसे राज्य में यह काम काफी मुश्किल है. ऐसे में जो भी दल सीधे तौर पर नौकरी देने की बात करेगा. वही युवा मतदाताओं के वोट को अपने पक्ष में करने में सफल रहने वाला है.