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ईरान-चीन 'सीक्रेट पैक्ट' के कारण चाबहार रेल प्रोजेक्ट से बाहर हुआ भारत

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Published : Jul 14, 2020, 11:02 PM IST

Updated : Jul 15, 2020, 12:17 AM IST

ईरान ने चाबहार रेल परियोजना से बाहर कर भारत को झटका को झटका देते हुए भारतीय कंपनी IRCON को चाबहार रेल प्रोजेक्ट से अलग कर दिया है. इतना ही नहीं अब चीन-ईरान एक सीक्रेट समझौता करने जा रहे हैं. इसके तहत चीन 25 साल की अवधि तक सैन्य क्षेत्र में सहयोग करेगा और ईरान में 400 बिलियन डॉलर का बड़ा निवेश करेगा. पढ़िए, भारत-ईरान संबंधों पर ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

secret Iran China pact
ईरान चीन सीक्रेट पैक्ट

नई दिल्ली : ईरान दुनिया के देशों के लिए ताकत के खेल का नया मैदान बन गया है. दरअसल, ईरान 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बिछा रहा है, जो ईरान के बंदरगाह शहर चाबहार को अफगानिस्तान के सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ेगी. इस परियोजना को लेकर दुनिया के देशों ने ईरान में अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है.

यह सब ऐसे समय में हुआ है, जब ईरान और चीन एक सीक्रेट समझौते पर हस्ताक्षर करने की कगार पर हैं. हालांकि, अभी तक इस समझौते को सार्वजनिक नहीं किया गया है. इसके समझौते के तहत चीन, ईरान में भारी निवेश करेगा और बदले में रियायती दरों पर तेल खरीदेगा. साथ ही चीन 25 साल की अवधि तक ईरान को सैन्य क्षेत्र में सहयोग करेगा.

ईरान-चीन के बीच होने वाले समझौते के महत्व को रेखांकित करते हुए ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला सैयद अली खामेनी के सलाहकार अली अका-मोहम्मदी ने सोमवार को मीडिया को बताया कि 'समझौते के खाका' दोनों देशों के आर्थिक व सैन्य सहयोग को मजबूत करता है और यह तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप से सुरक्षा प्रदान करेगा. तीसरा पक्ष का स्पष्ट रूप अमेरिका है.

अका-मोहम्मदी ने कहा कि यह दस्तावेज (पैक्ट) अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म करता है और ईरान-चीन के रोडमैप में अमेरिका की कई योजनाओं को खारिज करता है.

गौरतलब है कि यह ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत-अमेरिका संबंध मजबूत हो रहे हैं और भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक 'क्वाड' नौसैनिक संधि की बात हो रही है. साथ ही पूर्वी लद्दाख में सैन्य टकराव के बाद भारत-चीन संबंध बिगड़ रहे हैं.

चाबहार रेल प्रोजेक्ट से IRCON बाहर

बता दें कि हाल ही में भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी IRCON ने ईरान सरकार के साथ रेल लाइन बिछाने के लिए समझौता किया था, लेकिन ईरान ने फंड आने में देरी का हवाला देते हुए इरकॉन को परियोजना से बाहर कर दिया है. ईरानी सरकार अब अपने दम पर रेल लाइन बिछाने के कार्य को पूरा करेगी.

ईरान ने इस परियोजना को शुरू करने के लिए ईरानी राष्ट्रीय विकास निधि से 400 मिलियन डॉलर की मंजूरी दे दी है, जबकि इरकॉन ने 1.6 बिलियन डॉलर की सहायता का वादा किया था.

ईरान ने पिछले सप्ताह मंगलवार को ही इस पैसेंजर-फ्रेट-रेल परियोजना पर काम शुरू कर दिया है. इस परियोजना से लगभग 16,000 नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है. शुरुआत में 150 किलोमीटर पटरी बिछाई जाएगी, जो मार्च 2021 तक तैयार होगी, जबकि पूरी रेल परियोजना 2022 तक पूरी होगी.

उल्लेखनीय है कि भारत के लिए, इस परियोजना में सक्रिय भागीदारी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे रास्ते से भारत की पहुंच मध्य एशिया तक काफी आसान हो जाती.

माना जा रहा है कि ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण पकरण आपूर्तिकर्ता और ठेकेदार डर का माहौल था, इसलिए उपकरण आपूर्ति करने में देरी हुई.

भारत-ईरान संबंधों में गिरावट

हाल के दिनों में भारत-ईरान संबंधों में गिरावट देखने को मिली है और ताजा घटनाक्रम भारत के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है.

दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और शिया मुस्लिम बहुल कारगिल को लेह के साथ केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया था. ईरान ने मोदी सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया था, तब से भारत-ईरान के संबंधों में गिरावट दिखने को मिल रही है. हालांकि अनुच्छेद 370 पर ईरान का रुख अपने विरोध सऊदी अरब से विपरीत था, क्योंकि सऊदी 370 निरस्तीकरण मुद्दे पर चुप था.

इसके अलावा ईरान, चीन और रूस के बीच 30 दिसंबर, 2019 को ओमान की खाड़ी में हुए प्रमुख नौसैनिक अभ्यास 'मैरीटाइम सिक्योरिटी बेल्ट' में भारत को आमंत्रित नहीं किया गया था, जबकि चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत पहले ही काफी निवेश कर चुका है.

इसके अलावा दोनों देशों में बिगड़ते रिश्तों का एक प्रमुख कारण अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती निकटता और अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह ईरान से तेल का निर्यात न करने का निर्णय भी है.

भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 80 प्रतिशत से अधिक तेल ईरान से ही आयात करता था और चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार भारत ही था. भारत ने ईरान से तेल आयात करना लगभग रोक दिया है और अब अमेरिका और कुछ हद तक वेनेजुएला से तेल आयात करता है.

चीन-ईरान 'सीक्रेट' पैक्ट
दूसरी ओर, भू-सामरिक दृष्टिकोण के अलावा ऊर्जा की कमी वाले चीन के लिए ईरान के विशाल गैस भंडार बहुत फायदे का सौदा है, क्योंकि चीन के पास अमेरिका के खिलाफ खड़े होने और ईरान के खिलाफ लगे अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने की क्षमता है.

जिस समय ईरान-चीन के संबंध मजबूत हो रहे थे, उसी समय भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा और इस बीच इरकॉन का मामला सामने आया है.

ईरान-चीन गर्मजोशी से 25 साल की अवधि के लिए संधि की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं, जिसमें दूरसंचार, बैंकिंग, सैन्य, सुरक्षा, आर्थिक, रेलवे, बंदरगाहों से संबंधित लगभग 100 परियोजनाएं शामिल होंगी.

परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी के विकास को लेकर ईरान के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिबंधों को खत्म करने का लक्ष्य रखने वाली इस संधि के तहत चीन 25 साल की अवधि को दौरान ईरान में 400 बिलियन डॉलर का बड़ा निवेश करेगा.

कहा जा रहा है कि यह समझौता ईरान में चीनी निवेश परियोजनाओं की रक्षा के लिए 5,000 चीनी ​​सैनिकों की उपस्थिति की भी अनुमति देता है.

इस 'समझौते' को 'चीन-ईरान व्यापक रणनीतिक समझौता' कहा जा रहा है, हालांकि, ईरान में घरेलू प्रतिरोध का सामना कर रहे लोगों का मानना ​​है कि ईरान चीन के साथ एक कमजोर स्थिति में बातचीत कर रहा है. यह उसके लिए घाटे का सौदा है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस समझौते से भारत के खिलाफ चीन के भू-रणनीतिक हित और मजबूत होंगे.

Last Updated : Jul 15, 2020, 12:17 AM IST

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