नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डटी हुई हैं. इस कारण 'डिसइंगेजमेंट और डि-एस्केलेशन प्रक्रिया' (DDP) को लेकर होने वाली अगले दौर की कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं, जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या चीन वास्तव में सीमा विवाद के कारण बढ़ रहे तनाव को कम करना चाहता है या यह सिर्फ समय बर्बाद कर रहा है?
भारतीय सेना के सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया है कि आज (गुरुवार) होने वाली कोर कमांडर स्तरीय बैठक का कार्यक्रम बनाने के बावजूद, पीएलए के साथ सहमति नहीं बन पाई.
एक सूत्र ने कहा, उन्होंने (चीन) तारीख तय करने से इनकार कर दिया. पैंगोंग नदी दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध बनी हुई है.
सूत्र ने बताया कि चीनी पीएलए पोंगोंग त्सो गतिरोध को पहले हल करने के लिए आग्रह कर रहा है, जबकि भारतीय सेना एजेंडा में सभी हिंसक बिंदुओं को शामिल करने के लिए उत्सुक है. बैठक के लिए बुनियादी आम एजेंडे पर सहमति के बिना तारीख तय नहीं की जा सकती है.
बता दें कि भारत चीन सेना के बीच हुए गतिरोध के बाद अब तक कोर कमांडर स्तर की छह जून, 22 जून, 30 जून और 14 जुलाई को चार बैठकें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चुशुल-मोल्दो में हो चुकी हैं.
क्षेत्र में चीन को मिलने वाले लाभ के अलावा लद्दाख के पूर्वी हिस्से में पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी का सामना करने के लिए चीन आवश्यक बुनियादी ढांचे, रसद और उपकरणों के मामले में भारत के मुकाबले कई गुना बेहतर तरीके से तैयार है.
ऐसे में कोरोना वायरस महामारी जूझ रहे भारत को अपने उपकरणों के रखरखाव के साथ-साथ बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात रखने की वित्तीय लागत भारतीय अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती है.