हैदराबाद : भारत और चीन के बीच मंगलवार की घटना पर छाया कोहरा अब तक साफ नहीं हुआ है क्योंकि कई सवाल अब भी अनुत्तरित है. यह समझ पाना मुश्किल है कि भारतीय गश्ती दल को वास्तवलिक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के शत्रुतापूर्ण क्षेत्र में क्यों भेजा गया है.
बता दें कि 15-16 जून की रात को कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सेना के गश्ती दल ने डी-एस्केलेशन मिशन के बाद गलवान घाटी में भारतीय क्षेत्र में निर्मित कुछ संरचनाएं पाईं और चीनी सेना को उन्हें हटाने के लिए कहा. यह आग्रह बाद में एक खूनी संघर्ष में बदल गया. इसमें संतोष बाबू सहित 20 जवान मारे गए और दर्जनों घायल हो गए.
लगभग 4000 किलोमीटर लंबी एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए पूर्व में ऐसे समझौते किए गए हैं, जिन पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए हैं. बॉर्डर डिफेंस को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (बीडीसीए), 2013 हो या वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) समझौता 1996. दोनों देशों को उनके नियमों का पालन करना चाहिए, जिसे सैन्य भाषा में रूल्स ऑफ इंगेजमेंट कहते है. उन नियमों में कहीं नहीं लिखा है कि एलएसी पर गश्त करने वाली सेना हथियार नहीं ले जा सकती. यहां तक कि पहले से ही शत्रुतापूर्ण माहौल है. उपग्रह चित्र में भी स्पष्ट रूप से एलएसी पर चीनी बख्तरबंद वाहनों की तैनाती को दिखाई पड़ता है, जो समझौतों का स्पष्ट उलंघन है.
पढ़ें :सीमा विवाद के बीच रूस और चीन के साथ बैठक में शामिल होगा भारत : विदेश मंत्रालय
हालांकि समझौते के अनुसार एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य शक्तियों/क्षमताओं का उपयोग नहीं किया जा सकता और न ही यह किसी देश को गश्ती के अनुसरण की अनुमति देता है और अगर उन्हें कोई क्षेत्रीय संरेखण मुद्दा मिलता है तो उन्हें बताने के तरीके भी हैं, जिनका समझौतों में उल्लेख है.
जब दो सेनाएं गश्ती के दौरान सम्पर्क में आती हैं तो समझौते का सम्मान करती हैं. सामान्यत: एलएसी पर सेना के साथ बैनर तैयार रहते हैं, जिनपर लिका होता है- 'आप हमारे क्षेत्र के अंदर हैं अथवा कृपया वापस जाएं.'
दरअसल पूरी एलएसी अलग-अलग धारणाओं के साथ अपरिभाषित है. सीमा संघर्ष को संभालने के लिए, हॉटलाइन के माध्यम से बैठक और संचार डेढ़ साल पहले तक अक्सर होता था. विभिन्न सीमा बिंदुओं पर तनाव कम करने और दोनों सेनाओं के बीच संवाद करने के लिए दोनों पक्षों के पास स्थानीय स्तर पर दुभाषिया होते हैं. जब एक बड़े गश्ती दल को आगे गश्त बिंदुओं पर ले जाया जाता है तो दुभाषियों को साथ ले जाया जाता है. एलएसी पर तैनात भारतीय सेना में भाषा विशेषज्ञ चीनी और अंग्रेजी आराम से बोल सकते हैं उसी तरह चीनी व्याख्याकार पीएलए और भारत की सेना के बीच संवाद करने के लिए हिन्दी और अंग्रेजी बोल सकते हैं.
कर्नल संतोष बाबू की गश्त से मंगलवार की रात को दुश्मनों का अंदाजा लगाया जा सकता था. पांच या छह मई को एक बयान के दौरान स्पष्ट संदेश दिया गया था. दरअसल चीनी सेना ने भारतीय सेना को हटाने की कोशिश की थी. इसके तहत जान बूझकर बीडीसीए का घोर उल्लंघन किया था. मानक सैन्य नियमों के अनुसार सेना किसी भी समझौते के खिलाफ आत्मरक्षा में हथियारों का उपयोग कर सकती है. लेकिन हथियारों के बिना एलएसी पर शत्रुतापूर्ण वातावरण के दौरान सेना की गश्त कुछ ऐसी है, जो खटकती है. किसी भी घटना में हथियार ही होता है, जो सैनिकों की रक्षा करता है और अंततः राष्ट्रीय सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है.
पढ़ें :एलएसी पर हथियारों के इस्तेमाल से इसलिए बचते हैं भारत-चीन के सैनिक
भारतीय सेना मंगलवार को हथियारों के बिना बाहर क्यों गश्त कर रही थी. इसका जवाब दिया जाना चाहिए कि किसके निर्देश पर भारतीय सैनिकों ने उचित तैयारी के बिना चीनी सेना का सामना किया है. अतीत में सेना का गश्ती दल हथियार ले जाता रहा है और अब गश्ती के दौरान एलएसी पर सेना ने हथियार रखना क्यों बंद कर दिया है. यह जानना दिलचस्प होगा?
वस्तुतः, शांति का बयान जारी करने की अपेक्षा बैरल का मुंह नीचे रखना ही एक संदेश है.
एलएसी पर पेश किए गए ये नए अनौपचारिक सीमा प्रोटोकॉल कैसे हैं, जिनसे न सिर्फ जवानों की जान चली गई, बल्कि मारे गए सैनिकों के परिवारों के लिए और उन लोगों के लिए कई सवाल भी खड़े हो गए हैं, जो सीमाओं की सुरक्षा की परवाह करते हैं.