नयी दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर सुनवाई में हस्तक्षेप का आग्रह किया है.
हालांकि, भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) के इस कदम की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और देश की सम्प्रभुता से जुड़े मुद्दे पर 'किसी विदेशी पक्ष' का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं बनता है.
ओएचसीएचआर ने कहा है कि सुनवाई में 'अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, मानदंडों और मानकों' पर भी विचार करने की आवश्यकता है.
अर्जी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैश्लेट जेरिया की ओर से दायर की गई है. इस अर्जी में कहा गया है कि वह इस मामले में मानवाधिकारों की रक्षा एवं उसे बढ़ावा देने और उस संबंध में आवश्यक वकालत करने के लिए मिले अधिदेश के आधार पर न्यायमित्र (तीसरे पक्ष) के तौर पर हस्तक्षेप करना चाहती हैं.
ओएचसीएचआर ने 'कुछ लोगों को धार्मिक आधार पर प्रताड़ना से बचाने के लिए' सीएए के 'घोषित उद्देश्य' का स्वागत किया, लेकिन प्रताड़ित मुसलमानों के विभिन्न संप्रदायों को इस कानून के दायरे से बाहर रखने का मुद्दा उठाया.
अर्जी में कहा गया है, 'अनियमित हालात में सीएए शरणार्थियों सहित उन हजारों आव्रजकों को लाभ पहुंचा सकता है जिन्हें सामान्य स्थिति में अपने मूल देश में मुकदमों से बचने और नागरिकता प्राप्त करके कार्रवाई से बचने में समस्या हो सकती थी. यह प्रशंसा योग्य उद्देश्य है.
उसमें कहा गया है, 'लेकिन उन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यक है, विशेष रूप से मुसलमान समुदाय से जुड़े, जैसे... अहमदिया, हजारा और शिया मुसलमान, जिनके हालात ऐसे हैं कि उन्हें भी समान आधार पर सुरक्षा की जरुरत है जिनके आधार पर सीएए में अन्य की सुरक्षा की गई है'.