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उत्तराखंड के दो भाई बने सेना में अफसर, एक दूसरे के कंधे पर सजाया रैंक - पिथौरागढ़ के दो भाई बने सेना में अफसर

आईएमए की पासिंग आउट परेड में उत्तराखंड पिथौरागढ़ के दो भाई एक साथ सेना में अधिकारी बने हैं. दोनों भाइयों ने कड़ी मेहनत के बाद इस मुकाम को हासिल किया है.

two brothers from uttrakhand became officers in indian army
उत्तराखंड के दो भाई बने सेना में अफसर.

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Published : Jun 13, 2020, 8:46 PM IST

देहरादून: कोरोना का असर इस बार आईएमए की पासिंग आउट परेड पर साफतौर से देखा गया. IMA की पासिंग आउट परेड इस बार बेहद ही सादगी में संपन्न हुई. इस बार पीपिंग सेरेमनी में परिजनों की जगह ऑफिसर्स ने जांबाज अधिकारियों के रैंक सजाए. उत्तराखंड देहरादून में हुई पासिंग आउट परेड में उत्तराखंड के 31 जांबाज सेना में अधिकारी बनें. इन अधिकारियों में पिथौरागढ़ के दो ऐसे भी भाई शामिल हैं, जो एक-साथ पले-बढ़े और एक साथ ही आईएमए में दाखिल भी हुए.

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के रोहित सिंह वाल्दिया और विकास सिंह वाल्दिया एक साथ भारतीय सेना में शामिल होकर पिथौरागढ़ का नाम रोशन किया है. रोहित ने 12वीं पास करने के बाद एनडीए के जरिए आईएमए में दाखिल हुए. वहीं, विकास सीडीएस के जरिए आईएमए में दाखिल हुए. ईटीवी भारत से खास बातचीत में रोहित और विकास ने कहा कि कोरोना संकट के चलते परिजन इस बार पीपिंग सेरेमनी में शामिल नहीं हो पाए. लेकिन दोनों भाइयों ने एक-दूसरे को रैंक सजाकर खुशी को आपस में बांटा है.

उत्तराखंड के दो भाई बने सेना में अफसर.

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रोहित के मुताबिक उनके पिता भी भारतीय सेना के सिग्नल यूनिट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. पिता के बाद वे भी जल्द सिग्नल यूनिट में बतौर अफसर ज्वॉइन करने वाले हैं. वहीं, विकास का कहना है कि उनके माता-पिता की कड़ी मेहनत और शिक्षा की बदौलत दोनों भाई आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं. विकास के मुताबिक दोनों भाई आईएमए की ट्रेनिंग के दौरान अक्सर एकेडमी में मिलते रहते थे और उन्होंने इस लम्हे का खूब आनंद उठाया है.

फिलहाल इनका परिवार मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहता है. कोरोना के चलते इस बार की पासिंग आउट परेड वाकई में ऐतिहासिक रही है. इसी पल को और यादगार बनाने के लिए सेना प्रमुख भी कैडेट्स का हौसला बढ़ाने के लिए उनके बीच पहुंचे. उत्तराखंड वीर सैनिकों की भूमि है. प्रदेश के समृद्ध सैन्य इतिहास के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सैन्य धाम मानते हैं. प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर अब तक देश की सीमाओं के सजग प्रहरियों का दायित्व अपने प्राणों की आहुति देकर भी उत्तराखंड के जांबाजों ने अपने सैन्य धर्म को निभाया है.

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