रांची :आदिवासी समाज के विकास को लेकर झारखंड राज्य का गठन किया गया. राज्य गठन के 20 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी भी समाज मुख्यधारा में जुड़ा नहीं है. सरकार हर मंच से ही कहती है कि अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजना पहुंचाना, यह पहली जिम्मेदारी है, लेकिन जब आदिवासी समाज के लोग को एक पुल भी मुहैया न हो तो आप क्या कहेंगे. ऐसा ही कुछ नजारा हजारीबाग के टाटी झरिया प्रखंड के हरदिया गांव की है, जहां न तो पक्की सड़क है और न ही नदी पार करने के लिए पुल है. इसकी वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
गांव में न तो पुल और न ही सड़क
देश आजादी का 73वां वर्ष मनाने जा रहा है, लेकिन इस 73 वर्ष में भी ग्रामीण अगर सड़क और पुल तक नहीं है. टाटीझरिया प्रखंड मुख्यालय से लगभग 13 किलोमीटर दूर हरदिया गांव की है, जहां की कुल आबादी 300 है. गांव में केवल अनुसूचित जनजाति के लोग ही निवास करते हैं. इस गांव में आने के लिए न तो पक्की सड़क है और न ही नदी पार करने के लिए पुल है. ऐसे में यहां के लोग काफी परेशान है.
विकास के नाम पर सिर्फ एक स्कूलघनघोर जंगल के बीच स्थित इस गांव में सरकारी तंत्र शायद ही कभी पहुंचा होगा. विकास के नाम पर गांव में एक स्कूल है, जहां शिक्षक हमेशा आते हैं, लेकिन लॉकडाउन होने के कारण फिलहाल स्कूल बंद हैं. वहीं, गांव के लोग शहर आने के लिए नदी पार किया करते थे. उसके बाद 7 किलोमीटर घनघोर जंगल में पैदल चलने के बाद प्रखंड मुख्यालय के लिए गाड़ी से पहुंचते है. ऐसे में यहां के स्थानीय पत्रकार भी कहते हैं कि हम लोग को कई बार ग्रामीणों ने कहा कि सड़क निर्माण के लिए मदद करें. हम लोगों ने भी प्रशासन को आवेदन दिया, लेकिन आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई. खटिया ही बनती है एंबुलेंस
बरसात के दिनों में ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऐसे में ग्रामीणों ने विचार किया कि क्यों न खुद से ही पुल बना दिया जाए. ऐसे में आदिवासी समाज के युवाओं ने सच्ची लगन और मेहनत से लकड़ी का पुल बना दिया. अब इस लकड़ी के पुल से ग्रामीण अपने गांव से शहर और शहर से गांव पहुंच जाते हैं. ग्रामीण कहते भी हैं कि पहले बरसात के दिनों में जब पानी नदी में बढ़ जाता था तो हम लोगों को रात भर नदी के इस पार इंतजार करना पड़ता था. जब पानी कम होता तब गांव जाते थे. साथ ही उनका यह भी कहना है कि अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाए तो खटिया ही एंबुलेंस बन जाती है.
सरकार ले मामले का संज्ञान
सरकार ने आवेदनों के बाद भी इन पर ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से ये अपनी मूलभूत सुविधा से कोसों दूर है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि जिस उद्देश्य से राज्य का गठन हुआ था वह अब तक पूरा नहीं हो पाया. सरकरा को जल्द ही मामलें में संज्ञान लेना चाहिए.
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साहिबगंज जिले की दो विधानसभा बरहेट और बारियो में आदिवासी बहुल संख्या में पाए जाते हैं. बरहेट विधानसभा की कुल जनसंख्या 1,62,231 है. इसमें कुल जनसंख्या का 65 प्रतिशत आबादी आदिवासी है. वहीं, बारियो विधानसभा में कुल जनसंख्या 1,68,277 है. इसमें कुल 55 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी है.
पूरे विश्व में आदिवासी समुदाय विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं. इस दिन आदिवासी समुदाय समारोह आयोजित कर नाच गान करते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं. हालांकि, इस बार कोरोना के कारण पर्व फीका जरूर है.
दरअसल, विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी. इसको मनाने के पीछे जनजातीय समाज की समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी और बंधुआ मजदूर के निराकरण के लिए विश्व का ध्यान आकर्षित करना है. इसके साथ ही इसके माध्यम से आदिवासी समुदाय को मजबूत करने के लिए आदिवासी समाज आह्वान करते हैं. मगर इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है.
आदिवासी समाज के नेता हांदू भगत ने बताया कि पूरे विश्व में 9 अगस्त को आदिवासी दिवस मनाने के पीछे तात्पर्य है कि जनजातीय समुदाय के लोग एक झुंड में एक जगह जमा हों और 9 अगस्त को उत्सव के रूप में मनाएं. उन्होंने कहा कि अपने आप को एकता के सूत्र में बांधे हुए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए वर्तमान समय में अपनी समस्याओं को संगठित होकर लड़ाई लड़ने का एकमात्र उद्देश्य है. 9 अगस्त के माध्यम से पूरे विश्व में आदिवासी एक झंडे के नीचे खड़े हों.