हैदराबाद : कोविड-19 महामारी के कारण राष्ट्रव्यापी बंदी ने कई राज्यों के प्रवासी मजदूरों को बड़े पैमाने पर पलायन की मजबूर कर दिया. केंद्र और संबंधित राज्य सरकार को इन दिहाड़ी मजदूरों की मुसीबत पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
दरअसल कुछ रोज पहले इस संकट काल में हजारों प्रवासी श्रमिकों अपने गांव में वापस जाने के लिए दिल्ली-यूपी सीमा पर स्थित आनंद विहार बस टर्मिनल पहुंच गए. हालांकि रोकने के बाद भी सैकड़ों लोगों ने फिर से जाने का प्रयास किया, लेकिन बस स्टेशन से कुछ दूरी पर ही पुलिस के बैरिकेड्स द्वारा फिर से रोक कर दिया गया.
बता दें कि कोरोना वायरस से निबटने के लिए 24 मार्च को राष्ट्रव्यापी बंदी की घोषणा की गई थी. सभी व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों पर एक तरह का गतिरोध लग गया है. इससे प्रवासी श्रमिकों का कामकाज रुक गया. इनमें से अधिकांश दैनिक मजदूरी करने वाले हैं, जो बड़े शहरों में अपनी जीविका के लिए कार्य करते हैं. इसलिए जब वे कमाते हैं, तब ही वे किराया या भोजन का भुगतान करते हैं. श्रमिक भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य सेवा और संक्रमण से संबंधित चिंता से ग्रस्त हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, महाराष्ट्र और केरल सहित देश के विभिन्न हिस्सों से प्रवासी मजदूरों का पलायन ने दहशत जैसी स्थिति उत्पन्न कर दिया. हजारों लोग राहत शिविरों से बाहर आए और अपने गांव-घर जाने की मांग की.
कई रिपोर्टों के अनुसार कितने ही मजदूर अपने पैतृक गांवों तक पहुंचने के लिए पैदल ही निकल गए और अपने परिवार के बारे में चिंतित थे.
एक आश्चर्यभरा घटना उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ. जब स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों ने प्रवासी मजदूरों पर कीटाणुनाशक का छिड़काव किया. इससे सिद्ध होता है कि प्रवासियों को काफी उत्पीड़न झेलना पड़ा.
बहरहाल इन सबके पीछे लॉकडाउन दिशानिर्देशों और ऑनलाइन प्रसारित होने वाली फर्जी मैसेज में स्पष्टता की कमी मानी गई. इसमें विभिन्न प्रशासनों की ढीली नीति ने उनमें भय और दहशत दोनों बढ़ा दी है. वे किसी भी कीमत पर 'मूल भूमि' तक पहुंचने के लिए किसी भी सीमा को पार करने के लिए बेताब थे.