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चीन के साथ देश की व्यापार नीति सार्वजनिक करने के लिये न्यायालय में याचिका

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Published : Jul 1, 2020, 8:01 PM IST

पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव के दौरान ही उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करके चीन के साथ भारत की व्यापार नीति सार्वजनिक कराने का अनुरोध किया गया है.

चीन के साथ व्यापार आत्मनिर्भर भारत नीति के खिलाफ
चीन के साथ व्यापार आत्मनिर्भर भारत नीति के खिलाफ

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव के दौरान ही उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करके चीन के साथ भारत की व्यापार नीति सार्वजनिक कराने का अनुरोध किया गया है.

पूर्वी लद्दाख के कई स्थानों पर भारत और चीन की सेनायें आमने सामने हैं और गलवान घाटी में 15 जून को हुयी हिंसक झड़प के बाद से वहां तनाव व्याप्त है. इस हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गये थे. इस झड़प में चीन को भी क्षति उठानी पड़ी थी लेकिन उसने इस नुकसान का विवरण अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है.

गलवान घाटी की घटना के बाद सरकार ने 3500 किलोमीटर लंबी वास्तविक सीमा रेखा पर चीन की सेना के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिये भारतीय सेना को खुली छूट दे दी है.

यह याचिका जम्मू निवासी अधिवक्ता सुप्रिया पंडिता ने दायर की है. अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार और दुष्यंत तिवारी के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 15 जून की घटना के बाद से भारत के नागरिक और व्यापारिक संगठन देश में चीनी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं.

याचिका के अनुसार सरकार ने भारत की सुरक्षा को खतरा बताते हुये चीन के 59 मोबाइल ऐप पर 29 जून को प्रतिबंध लगा दिया है.

याचिका में कहा गया है कि इन मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध स्वागतयोग्य कदम हो सकता है लेकिन दूसरी ओर, कुछ चुनिन्दा राज्य सरकारों और चुनिन्दा कारोबारी घरानों को चीनी कारोबारी घरानों के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने की अनुमति दी जा रही है. इससे एक गलत संदेश जा रहा है.

याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि केन्द्र और अन्य को उन सहमति पत्रों को निरस्त करने का निर्देश दिया जाये जिन पर चीन की कंपनियों के साथ हस्ताक्षर किये गये हैं.

याचिका में दावा किया गया है कि चीन की सरकार या फिर उसकी कंपनियों के साथ कारोबार के लिये सहमति पत्रों पर राज्यों और कंपनियों द्वारा हस्ताक्षर करना प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के खिलाफ है.

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