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श्रमिक स्पेशल ट्रेन में तीन दर्जन शिशुओं का जन्म, नाम करुणा से लेकर लॉकडाउन यादव तक

वैश्विक महामारी के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सफर के दौरान तीन दर्जन महिलाओं ने शिशुओं को जन्म दिया. वहीं कई लोगों ने हालिया समय में प्रचलित शब्दों पर अपने बच्चों का नाम रख दिया है. जानें विस्तार से...

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Published : Jun 8, 2020, 3:05 AM IST

नई दिल्ली : ईश्वरी देवी ने अपनी बेटी का नाम करुणा रखा है तो रीना ने अपने नवजात बेटे को लॉकडाउन यादव नाम दिया. दोनों बच्चों में वैसे तो कोई समानता नहीं है, सिवाए उस असाधारण स्थिति के, जिसमें उन्होंने जन्म लिया. कहर लेकर आई वैश्विक महामारी के बीच इनका जन्म श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफर के दौरान हुआ. इस महामारी ने मानवीय जीवन के सभी पहलुओं पर असर डाला है और शिशुओं के नाम भी इससे अछूते नहीं हैं.

करुणा के पिता राजेंद्र यादव से जब पूछा गया कि उनके बच्चे के नाम पर 'कोरोना' या 'कोरोना वायरस' का क्या असर है तो उन्होंने कहा, 'सेवा भाव' और 'दया'.

उन्होंने छत्तीसगढ़ के धरमपुरा में अपने गांव से फोन पर बताया, 'लोगों ने मुझसे उसका नाम बीमारी पर रखने को कहा. मैं उसका नाम कोरोना पर कैसे रख सकता हूं, जब इसने इतने लोगों की जान ले ली और जीवन बर्बाद कर दिए?'

उन्होंने कहा, 'हमने उसका नाम करुणा रखा जिसका मतलब दया, सेवा भाव होता है जिसकी हर किसी को मुश्किल वक्त में जरूरत पड़ती है.'

करुणा का जन्म श्रमिक स्पेशल ट्रेन में संभवत: देश के सामने आए सबसे मुश्किल वक्त में हुआ जब कोविड-19 ने करीब 7,000 लोगों की जान ले ली है, ढाई लाख को संक्रमित किया है और कारोबार ठप कर लोगों को बेरोजगार कर दिया है.

ईश्वरी उन तीन दर्जन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने गर्भावस्था के अंतिम चरण में भूख एवं बेरोजगारी का सामना किया और असामान्य स्थितियों में बच्चों को जन्म दिया.

श्रमिक स्पेशल ट्रेन से मुंबई से उत्तर प्रदेश का सफर कर रही रीना ने अपने बेटे को लॉकडाउन यादव नाम दिया ताकि जिस मुश्किल वक्त में वह पैदा हुआ उसे हमेशा के लिए याद रखा जाए.

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उन्होंने कहा, 'वह बेहद मुश्किल परिस्थिति में जन्मा है. हम उसका नाम लॉकडाउन यादव रखना चाहते थे.'

एक अन्य महिला, ममता यादव आठ मई को जामनगर-मुजफ्फरपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार हुई थी. वह चाहती थी कि बिहार के छपरा जिले में जब वह अपने बच्चे को जन्म दे तो उनकी मां उनके साथ हो, लेकिन गंतव्य स्टेशन तक पहुंचने से पहले ही उनके हाथ में उनका बच्चा था.

ममता के डिब्बे को प्रसव कक्ष जैसे कक्ष में बदल दिया गया जहां अन्य यात्री बाहर निकल गए. डॉक्टरों की एक टीम और रेलवे स्टाफ ने ममता की मदद की.

रेलवे के प्रवक्ता आर डी बाजपेयी ने कहा, 'हमारे पास चिकित्सीय आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए एक प्रणाली है.'

इसी तरह विभिन्न गंतव्य स्थानों तक जा रही कई अन्य गर्भवती महिलाओं ने भी चलती ट्रेन में अन्य यात्रियों की मदद से स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया.

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