चेन्नई (तमिलनाडु) : प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल. इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है. घने वृक्ष, वृक्षों से लिपटी लताएं, पक्षियों की चहचहाहट और जंगली जानवरों से बसे जंगल में हर कोई सैर करना चाहता है. शहर की भागदौड़ से दूर यहीं तो प्रकृति का आनंद है, लेकिन इन प्राकृतिक जगहों को बसाने में कुछ लोगों के ही कदम आगे बढ़ते हैं.
इन जंगलों को जहां कुछ माफिया अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं. जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में सर्वानन जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी.
सर्वानन ने खूबसूरती से कराया रूबरू
जंगल जो पक्षियों, जानवरों और पौधों जैसे जीवित प्राणियों के लिए प्रकृति का एक घर है. कई बार देखने को मिलता है कि लोग अपने फायदे के लिए जंगलों की ओर दौड़ लगाते हैं. अपने आराम के लिए प्रकृति से प्रेम दिखाते हैं. इस परिस्थिति में सर्वानन नाम के एक व्यक्ति ने अकेले ही आश्चर्यचकित कर देने वाले जंगल को एक नया रूप दे दिया. यह जानने के लिए भी हम उतने ही उत्सुक थे कि कैसे ये उपलब्धि संभव हो सकी. यही जानने के लिए हम पहुंचे पुडुचेरी पुथुराई क्षेत्र के अरण्य में, जहां हम उस खूबसूरती से रूबरू हुए.
कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च
सर्वानन का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिले के जावडू नालों के तल पर स्थित वालयामपट्टु गांव में एक कृषक परिवार में हुआ था. उन्होंने समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है. प्रकृति के प्रति उनका प्रेम देखते ही बनता है. वे प्रकृति को और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई प्रकार के पेड़-पौधे लगाते रहते हैं. उनमें जंगल के प्रति काफी स्नेह और रुचि है. उन्होंने एक युवा के तौर जंगल को बचाने के लिए कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च में भाग भी किया. इसके साथ ही लोगों से आग्रह किया कि वे पश्चिमी घाट को विनाश से बचाएं.
30 साल पहले आए थे ऑरोविले
सर्वानन का मानना है कि प्रकृति ने उन्हें काफी कम उम्र में ही गले लगा लिया. उनको ये मौका मिला कि वे प्रकृति की देखभाल कर सकें. सर्वानन खुद 30 साल पहले ऑरोविले आए थे. जब ऑरोविले प्रशासन ने रखरखाव के लिए उन्हें ये जमीन सौंपी थी, तब लोगों द्वारा इस जमीन को चराई के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था.
युवाओं की मदद से खेती के लिए की जमीन तैयार
सर्वानन ने सबसे पहले सूखे उष्णकटिबंधीय जंगलों को एक ऐसी जगह बनाने की कोशिश की, जहां बारिश के पानी को बचाने का कोई प्रावधान नहीं था. ये पूरी जमीन लाल मिट्टी और कंकड़ से भरी हुई थी, जो बढ़ते पौधों के लिए उपयुक्त नहीं थी. इसके बावजूद सर्वानन अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे. उन्होंने गांव के युवाओं की मदद से खेती के लिए जमीन तैयार की.
पेड़ों की कई किस्मों से भरा है जंगल
सर्वानन ने कन्याकुमारी, जवाडु हिल और चेंजी से 150 पेड़ पौधे खरीदे और लगाए. इसके साथ ही उनका रखरखाव भी किया. वह पेड़ों की देखभाल करने के लिए वापस पुथुराई में ही रुक गए. इस तथ्य के बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी कि एक जंगल को मनुष्य द्वारा स्वयं नहीं बनाया जा सकता, सर्वानन ने इसे एक सुंदर रूप देने की ठान ली. सर्वानन कहते हैं कि मैंने महसूस किया कि जंगल तभी जीवित होगा, जब पक्षियों और जानवरों जैसे अन्य प्राणियों का निवास यहां होगा. वह कहते हैं कि मनुष्य जंगल का वास्तविक लाभार्थी है, जो पक्षियों और जानवरों द्वारा समृद्ध है.
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पक्षियों और जानवरों के लिए बनाया आसरा
अपने सपने को सच करने के लिए सर्वानन ने सबसे पहले पौधे रोपे और इस स्थान को तैयार किया ताकि पक्षियों और जानवरों को निवास के लिए अनुकूल बनाया जा सके. उन्होंने इस जमीन की मिट्टी की उर्वरता को समृद्ध करने के लिए सीमाएं निर्धारित कीं. इस प्रकार उस क्षेत्र में भूजल स्तर भी काफी बढ़ गया.