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जानें, दुनिया की भू-राजनीति में नक्शों का क्या है महत्व

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Published : Aug 7, 2020, 10:37 AM IST

सालों से नक्शों पर हो रहे विवाद आज की परिस्थिति में नए नहीं हैं. पृथ्वी पर हर देश की सीमाएं दर्शाने वाली कोई वास्तविक रूपरेखा मौजूद नहीं हैं, लेकिन फिर भी यह सीमाएं कई देशों के युद्ध का कारण बनी हुई हैं. नक्शा इन रेखाओं को दर्शाता है, एक राष्ट्र की पहचान को परिभाषित करता है और इस प्रकार स्वाभाविक रूप से राजनीतिक हो जाता है. आइए जानते हैं कि दुनिया की भू-राजनीति में नक्शों का महत्व क्या है.

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नक्शे

हैदराबाद : पाकिस्तान ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया है, जहां पूरे जम्मू-कश्मीर और गुजरात के सर क्रीक (धारा जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत को गुजरात के कच्छ क्षेत्र से विभाजित करती हुई अरब सागर में जा गिरती है) को पकिस्तान का क्षेत्र बताया है. नेपाल ने भारतीय क्षेत्रों को अपने नए नक्शे में नेपाल के क्षेत्र में दिखाया है. नक्शों का महत्वभू-राजनीति में हमेशा से रहा है.

नक्शों का महत्व

  • राज्यों ने लंबे समय तक नक्शों के महत्व को शक्ति के साधन के रूप में मान्यता दी है. किसी भी राज्य के स्वीकृत नक्शे देश की बदलती भू-राजनीतिक कल्पना के लिए महत्वपूर्ण हैं.
  • नक्शों का अक्सर राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के रूप में उपयोग किया जाता रहा है.
  • इतिहास देखें तो यह समझ आता है कि नक्शों को प्रचार-प्रसार (प्रोपागेंडा) के रूप में भी उपयोग किया गया है.
  • इन नक्शों का लक्ष्य एक ही था, जो समझने में काफी सरल था. नक्शे सिर्फ किसी देश के दुश्मनों के खिलाफ सार्वजनिक समर्थन उत्पन्न करने के लिए थे.
  • हमेशा से राज्यों की सीमाएं अस्पष्ट रही हैं और शासक के सैन्य विजय को दर्शाती आई हैं.
  • आधुनिक सीमाओं का एक तिहाई हिस्सा ज्यादातर उपनिवेशवाद का परिणाम है.

नए युग की शुरुआत और राष्ट्रवाद का उदय होने के बाद से ही देशों और राज्यों के बीच सीमाएं बनाने की कहानी कार्टोग्राफी के इतिहास के साथ जुड़ी हुई है. पृथ्वी पर हर देश की सीमाएं दर्शाने वाली कोई वास्तविक रूपरेखा मौजूद नहीं हैं, लेकिन फिर भी यह सीमाएं कई देशों के युद्ध का कारण बनी हुई हैं.

नक्शा इन रेखाओं को दर्शाता है, एक राष्ट्र की पहचान को परिभाषित करता है और इस प्रकार स्वाभाविक रूप से राजनीतिक हो जाता है.

प्रचार-प्रसार और राष्ट्रवाद के लिए किए गए नक्शों के उदाहरण

इंपीरियल फेडरेशन मैप 1886

  • 1886 में बना यह नक्शा ब्रिटिश साम्राज्य के विशाल क्षेत्र को दर्शाता है. इसमें ब्रिटेन द्वारा कब्जे में लिए गए देशों को जोड़ने वाले समुद्री मार्गों को दिखाया गया है.
  • नक्शे में सीमाओं के आसपास कलाकृति की गई है जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा नियंत्रित लोगों के चित्र शामिल हैं.
  • वे सभी केंद्र की ओर मुंह किए हुए हैं. इसमें मर्केटर प्रोजेक्शन और ग्रिड लाइनों का उपयोग किया गया है, जो यह भ्रम पैदा करता है कि यह नक्शा नेविगेशन के लिए है, लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य प्रचार है. यह नक्शा कार्टोग्राफिक लाइसेंस का उपयोग करके साम्राज्य की भव्यता को सुशोभित करता है.
  • 20 वीं शताब्दी से नक्शे राष्ट्रीय राजनीतिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. अपने लोगों की मान्यताओं को प्रभावित करने के लिए हर देश द्वारा प्रोपेगैंडा मैप विकसित किए गए थे.

1914 में जर्मनी का प्रचार नक्शा (जर्मनी प्रोपेगैंडा मैप 1914)

  • यह नक्शा 1914 में प्रकाशित हुआ था, जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ था. यह दिखाता है कि उस वक्त जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी किस तरह से अपना बचाव कर रहे थे.

शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी नक्शा

  • अमेरिकियों ने शीत युद्ध में भी इसी तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया था. 1956 में रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका द्वारा बनाया गया यह नक्शा दुनिया भर में कम्युनिस्ट (यूएसएसआर) के विशाल प्रभाव को दर्शाता है.
  • यह यूएसएसआर को दुनिया भर में उभरते हुए दिखाता है. यह कम्युनिस्ट विरोधी भावना को बढ़ाने की तरफ 'खतरे' जैसी शब्दावली का उपयोग करता है.
  • यह मानचित्र अपने लोगों की विचारधारा को प्रभावित करके राष्ट्रीय हितों का समर्थन करने वाले चित्रों को भी दिखाता है.
  • शीत युद्ध के दौरान साम्यवाद के प्रसार को दिखाने और सोवियत संघ को बढ़ाते हुए दिखाने के लिए इस नक्शे को बनाया गया था. नक्शा देखने वालों की धारणा थी कि साम्यवाद एक अविश्वसनीय खतरा था, जो एक बीमारी की तरह तेजी से फैल रहा था.

इन ऐतिहासिक उदाहरणों का आशय स्पष्ट है. नक्शे प्रचार के लिए और देशों का कब्जा दिखाने के लिए उपयोग किए जाते थे.

चीन कार्टोग्राफिक कूटनीति

  • चीन ने अपने नक्शों के माध्यम से अन्य देशों के क्षेत्रों पर लगातार दावे किए हैं.
  • चीन ने अपने राजनीतिक और भूरणनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कार्टोग्राफी का इस्तेमाल किया है.
  • 1940 के दशक में एक चीनी भूगोल-शास्रज्ञ द्वारा नक्शे पर दिखाई गई यू (U) के आकार की नो-डैश लाइन के आधार पर चीन दक्षिण चीन सागर के 90% हिस्से का दावा करता है.
  • अप्रैल 2019 में भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करते हुए, चीन ने अरुणाचल प्रदेश और ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा नहीं दिखाने के लिए 30,000 विश्व नक्शों को नष्ट कर दिया था.
  • यहां तक ​​कि चीन ने बीआरआई प्लान में हिस्सा लेने के लिए भारत को खाली करने के लिए एक मानचित्र जारी किया.
  • अप्रैल 2019 में द्वितीय बेल्ट एंड रोड फोरम के आयोजन के दौरान चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक नया नक्शा बनाया.
  • कई समीक्षकों के लिए नक्शे में अक्साई चिन, पूरे जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया.

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