मदुरै :सपने तो हम सभी देखते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने की चाह हर किसी में नहीं होती. चाह के साथ ही लगन हो तो आपको अपने सपने पूरे करने से कोई नहीं रोक सकता. इसी की मिसाल पेश की है तमिलनाडु की पूर्णा सुंदरी ने. पूर्णा सुंदरी जैसी बेटियां न सिर्फ परिवार बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा हैं. आंखों में रोशनी न होने के बावजूद जिस तरह अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जोश, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से उन्होंने सफलता पाई है, युवाओं के लिए एक नजीर बन गई हैं.
पूर्णा सुंदरी ने इस साल यूपीएससी परीक्षाओं में 286वीं रैंक हासिल की है. जिसके बाद से उन्हें बधाई देने वालों का सिलसिला जारी है. 25 वर्षीय पूर्णा पूर्णा दृष्टिहीन हैं, लेकिन इनकी मेहनत ने उनकी कमजोरी को आड़े नहीं आने दिया और आखिरकार उन्होंने जीत का परचम लहरा ही दिया. बता दें कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सितंबर 2019 में आयोजित एक लिखित परीक्षा और व्यक्तित्व परीक्षण के आधार पर सूची जारी की गई है.
कुल 829 उम्मीदवारों ने दी परीक्षा
व्यक्तित्व परीक्षण के लिए साक्षात्कार फरवरी-अगस्त में आयोजित किए गए थे. जिसमें कुल 829 उम्मीदवारों ने परीक्षा दी. अधिकांश योग्य उम्मीदवार (304) सामान्य वर्ग से हैं. उम्मीदवारों को अन्य प्रशासनिक सेवाओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के लिए अनुशंसित किया गया है.
हरियाणा के प्रदीप ने मारी बाजी
हरियाणा के प्रदीप सिंह ने परीक्षा में टॉप किया है. दूसरी रैंक जतिन किशोर ने हासिल की है. रैंक तीन पर प्रतिभा वर्मा महिला उम्मीदवारों में अव्वल रहीं. कन्याकुमारी, तमिलनाडु के गनेश कुमार, ओवरऑल सूची में 7वें स्थान पर रहे.
सपनों को दी उड़ान
वहीं तमिलनाडु के मदुरै की 25 वर्षीय पूर्णा सुंदरी ने सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) 2019 में 286वीं रैंक हासिल की है. ऐसा नहीं था कि पूर्णा जन्म से ही दृष्टिहीन थीं. 5 साल तक पूर्णा ने एक सामान्य बच्चे की तरह ही पढ़ाई की, लेकिन इसके बाद उनकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई. जिसके बाद उनकी एक सर्जरी भी हुई, जो असफल रही और पूर्णा ने धीरे-धीरे अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी, लेकिन उन्होंने अंधेरी जिंदगी में भी सपने देखना बंद नहीं किया. उन्होंने सपने देखे और उन्हें पूरा करने के लिए पूरी लगन के साथ मेहनत की.
सिविल सेवा परीक्षा में 286वीं रैंक हासिल की
पूर्णा सुंदरी ने बी.ए. अंग्रेजी साहित्य में और वर्तमान में तमिलनाडु ग्राम बैंक में क्लर्क के रूप में काम किया है. पूर्णा 2016 के बाद से सिविल सेवा एग्जाम की तैयारी कर रही थी. अपने पहले प्रयास में वह प्रारंभिक तैयारियां को क्लियर नहीं कर पाई. बाद में वह अपने दूसरे और तीसरे प्रयास में कामयाब रहीं, लेकिन साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त करने में विफल रही. फरवरी 2019 में उसने अपने चौथे प्रयास में साक्षात्कार में सफलता प्राप्त की और 286वीं रैंक मिली.
'माता-पिता के समर्थन के बिना संभव न था'
पूर्णा बताती हैं कि 'मैं पांच साल की उम्र से दृष्टिहीन हूं. मैं अपने माता-पिता के समर्थन और देखभाल के चलते इतनी ऊंचाई तक पहुंच पाई हूं. स्कूल के शिक्षक, कॉलेज के शिक्षक और दोस्तों ने हमारी बहुत मदद की. मेरे आस-पास के लोगों की प्रेरणा भी सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि मैं अपने आप में यह उम्मीद करती हूं कि मैं क्या हासिल कर सकती हूं.'