जयपुर : राजस्थान का करौली जिला अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्य समेटे हुए है. यह स्थान घने जंगल में होने के कारण बड़ा ही मोहक और सुंदर है. घने जंगलों के कारण यह इलाका डांग क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक डांग क्षेत्र के डकैतों के लिए यह स्थान शरणस्थली के रूप में उपयुक्त रहा है. डांग क्षेत्र जप-तप के लिए साधु-संतों का भी पसंदीदा स्थान था.
डकैतों के आतंक के कारण इस घने जंगल में लोग कभी आने की सोचते भी नहीं थे. यहां प्राचीन समय में काफी संख्या में जंगली जानवर भी पाए जाते थे. आज इस स्थान पर आज सैलालियों का रेला लगा रहता है. यहां आकर इंसान को शांति और सुकून की अनुभूति होती है. कई ऋषि-मुनियों ने यहां पर साधना भी की थी. यहां झरने से निरंतर जल धारा बहती रहती है.
इस कारण यहां पर अधिकतर डकैतों ने भी शरण लेकर लंबा समय व्यतीत किया था लेकिन, वर्तमान समय में सैलानियों और लोगों की आवाजाही बनी रहने के कारण धीरे-धीरे यह स्थान पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित होता जा रहा है.पिछले कुछ सालों में यह स्थान पिकनिक स्पॉट बन गया है. करौली जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर मंडरायल इलाके के पास स्थित है. ईटीवी भारत की टीम जब मंडरायल क्षेत्र में स्थित टपका की खोह पहुंची तो, वहां का नजारा अद्भुत था.
मंडरायल कस्बे से महज 18 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टपका की खोह में पहले डकैतों का डेरा रहता था. लोग वहां जाना तो दूर नाम सुनकर ही कांप जाते थे. यहां पर वर्तमान में एक ओर सिद्ध बाबा का स्थान है तो, दूसरी ओर कलकल बहता झरना. जिसका मोहक दृश्य हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है.
साथ ही खोह के अंदर पहुंचते ही आज भी डकैतों की कहानियां और प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों के द्वारा की गई तपस्या की यादें ताजा होती है.
दूर-दूर से आते हैं सैलानी
टपका की खोह में ऊंचाई से बहने वाले झरने को देखने के लिए सैलानी बड़ी दूर-दूर से यात्राएं कर पहुंचते हैं. सैलानी झरने पर स्नान का आनंद लेने से अपने आप को रोक नहीं पाते हैं. दिनभर झरने के नीचे सैलानियों का जमावड़ा रहता है.