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गोरखपुर ऑक्सीजन कांड : डॉ कफील ने दी सफाई, कहा- सरकारी नौकरी के दौरान नहीं की प्राइवेट प्रैक्टिस - गोरखपुर आक्सीजन मामला

गोरखपुर ऑक्सीजन कांड में निलंबित डॉक्टर कफील खान को मामले में क्लीन चिट नहीं मिली है. इसी मामले पर ईटीवी भारत से खुद डॉ. कफील खान ने बातचीत की. जानें डॉ. कफील ने क्या कुछ कहा...

डॉक्टर कफील खान

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Published : Sep 28, 2019, 10:01 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 9:41 AM IST

नई दिल्लीः गोरखपुर ऑक्सीजन कांड में निलंबित डॉक्टर कफील खान को फिलहाल क्लीन चिट नहीं मिली है. लेकिन उन पर लगे दो आरोप गलत पाए गए हैं, जबकि अन्य दो आरोपों पर फैसला आना अभी बाकी है. इस पर जांच चल रही है.

खान ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में सरकारी नौकरी के दौरान प्राइवेट प्रैक्टिस करने के आरोप को खारिज किया और कहा कि इसका कोई सबूत यूपी सरकार के पास नहीं है.

डॉ. कफील ने कहा की 8 अगस्त 2016 को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मेरी नौकरी का पहला दिन था और इससे पहले मैं क्या करता था. उससे योगी सरकार को कोई मतलब नहीं होना है. उन्होंने कहा कि हमारे ऊपर जो आरोप लगाये जा रहें हैं, उससे 10 अगस्त 2017 को गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में 70 बच्चों की मौत का क्या मतलब है.

डॉ कफील से हुई बातचीत

बता दें, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सीजन की कमी के कारण 60 बच्चों की मौत हो गई थी, जिसके बाद इस मामले में डॉक्टर कफील को सस्पेंड कर दिया गया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यूपी सरकार को विभागीय जांच की रिपोर्ट तीन महीने के अंदर देनी थी, जिसे 18 अप्रैल 2019 को पूरा कर लिया गया था, लेकिन खान को यह रिपोर्ट 26 सितंबर 2019 को मिली.

इस पर खान ने कहा कि उन्होंने कहा कि वह समय लोकसभा चुनाव का था और उस समय यदि यह रिपोर्ट आ जाती तो योगी और मोदी सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात हो जाती.

खान ने कहा की मैं सरकार से मांग करता हूं की हमारी नौकरी को फिर से बहाल किया जाए और इस केस की जांच सीबीआई करे या फिर न्यायालय द्वारा गठित एक स्वतंत्र समिति करें. साथ ही उन्होंने कहा कि 2017 में जिन 70 बच्चों की मौत हुई है, उनके परिवार वालों को यूपी सरकार मुआवजा दे और सरकार इस घटना की जिम्मेदारी ले.

खान ने कहा कि इंसेफेलाइटिस के कारण पिछले 25 वर्षों में तकरीबन 2500 बच्चों की मौत हो चुकी है. साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में स्वास्थ्य का अधिकार कानून बनाया जाना चाहिए, जिसके तहत बिना किसी भेदभाव के सभी देशवासियों को उनके नजदीकी चिकित्सा केन्द्र पर इलाज हो सके.

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बता दें कि विभागीय जांच में जो दो आरोप गलत पाए गए हैं, उनमें से एक ऑक्सीजन की कमी के बारे में उच्च अधिकारियों को सूचित नहीं करने का था उसे सही नहीं पाया गया. वहीं, दूसरा आरोप उन पर बाल रोग जैसे संवेदनशील विभाग में दी जाने वाली सुविधाएं स्टाफ का प्रबंधन न किए जाने का आरोप था, जिसे जांच में सिद्ध नहीं पाया गया है.

Last Updated : Oct 2, 2019, 9:41 AM IST

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