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'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव की जरूरत नहीं: सुभाष कश्यप

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का मानना है कि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के लिए कानून में बदलाव करने की जरूरत नहीं है. उनका कहना है कि अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसे लागू कर सकती है. पढ़ें पूरी खबर.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप

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Published : Jun 20, 2019, 12:01 AM IST

नई दिल्ली: देश में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के संवेदनशील मुद्दे पर फिर एक बड़ी राजनीतिक बहस शुरू हो गई है. विपक्ष के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं तो कुछ ने इसका समर्थन भी किया है. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बातचीत की.

सरकार चाहे तो 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लागू कर सकती
संविधान विशेषज्ञों की मानें तो ये फैसला देश हित में है और इसे सरकार चाहे तो लागू कर सकती है. इसके लिए किसी भी संविधान में बदलाव की जरूरत नहीं है. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की मानें तो उनका कहना है कि इसके लिए कानून में बिना बदलाव किए भी इसको लागू किया जा सकता है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से हुई बातचीत

आपको बता दें, सुभाष कश्यप लोकसभा के पूर्व महासचिव भी रह चुके हैं. उन्होंने वर्ष 1983 से 1990 तक सभा में अपनी सेवाएं दी हैं.

उन्होंने कहा कि अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसे लागू कर सकती है. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि इस पहल को एकदम से लागू नहीं किया जा सकता. इसे कुछ समय सीमा के भीतर लागू किया जा सकता है.

देशहित में है वन नेशन वन इलेक्शन
सुभाष कश्यप कहते हैं कि जब देश में अलग-अलग चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं तो आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सुशासन को लागू करना मुश्किल हो जाता है और सरकार फैसला नहीं ले पाती. बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल चुनाव कराने के लिए होता है, जिससे स्कूलों को बंद करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि इस नियम के लागू हो जाने पर चुनाव के नाम पर बार-बार स्कूलों को, सरकारी ऑफिसों को बंद नहीं करना पड़ेगा.

पढ़ें:नवीन पटनायक ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का किया समर्थन

चुनावों में खर्च होते हैं हजारों-करोड़ों रुपये
सुभाष कश्यप कहते हैं कि 2019 के इलेक्शन में 55 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए. वहीं इससे पहले 2014 के चुनावों में करीब 30 हजार करोड़ खर्च किया गया. इसमें वो पैसे शामिल नहीं है, जो काला धन के रूप में चुनाव में खर्च किया जाता है. जैसे कि टिकट खरीदने के लिए, वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए, शराब बांटने के लिए, जो चुनाव में अवैध रूप से किए जाते हैं.

एक दिन में ये संभव नहीं
उन्होंने कहा कि ये एक दिन में संभव नहीं है अगर हम 10 साल का वक्त लेकर चले तो पंचायत से लेकर संसद तक सभी चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं.

मतदाता सूची बनाने पर खर्च होते हैं करोड़ों
सुभाष कश्यप ने कहा कि राज्य सरकार चाहे तो कानून बनाकर इसे लागू कर सकती है. 18-19 राज्यों में कानून बनाकर ये किया जा सकता है कि पंचायतों, नगर पालिकाओं और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो. उन्होंने ये भी कहा कि अभी मतदाता सूची अलग-अलग होती है, लेकिन वोटर लिस्ट एक होनी चाहिए क्योंकि अलग-अलग मतदाता सूचनी बनाने पर लाखों करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 328 के अंतर्गत राज्य की विधानसभाएं ऐसा कानून बना सकती है.

कानून बनाने की जरूरत नहीं
कश्यप ने बताया कि स्टेट असेंबली और लोकसभा के चुनाव एक साथ करने के लिए कोई नया कानून बनाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि विधानसभाओं को भंग कर उन तमाम राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, जहां एक या डेढ़ साल के भीतर चुनाव होने हैं.

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