नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को प्रवासी मजदूरों से जुड़ी याचिका खारिज कर दी. याचिका में मांग की गई थी कि पैदल चल रहे सभी प्रवासी मजदूरों की पहचान कर यह सुनिश्चित किया जाए कि वे नि:शुल्क और गरिमापूर्ण तरीके से अपने मूल स्थानों पर पहुंचे. इसे लेकर देश के सभी जिला मजिस्ट्रेटों को तत्काल दिशा-निर्देश दिए जाएं.
दरअसल औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 प्रवासी मजदूरों की मौत पर हस्तक्षेप के लिए याचिका दायर की गई थी.
पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायाधीश एल. नागेश्वर राव, न्यायाधीश एस.के. कौल और न्यायाधीश बीआर गवई की पीठ ने कहा कि न्यायालय के लिए स्थिति की निगरानी करना संभव नहीं है, 'हम उन्हें चलने से कैसे रोक सकते हैं? इस न्यायालय के लिए यह निगरानी करना असंभव है कि कौन चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है?'
इस मामले में सुनवाई के दौरान पीठ के एक अन्य न्यायाधीश एसके कौल ने कहा, 'प्रत्येक वकील अचानक कुछ पढ़ता है और फिर आप चाहते हैं कि हम समाचार पत्रों के आपके ज्ञान के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मुद्दों का फैसला करेंगे? जाओ और सरकार के निर्देशों को लागू करो! हम आपको एक विशेष पास देंगे और आप जाकर जांच करेंगे.'
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा कहा गया था कि आठ मई को औरंगाबाद जिला (महाराष्ट्र) के गढ़ेजलगांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना पर शीर्ष न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. इसमें भोर में 5.30 बजे मध्य प्रदेश जा रहे कम से कम 16 प्रवासी कामगारों की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि सरकार ने पहले ही एक राज्य से दूसरे राज्य में परिवहन प्रदान करना शुरू कर दिया है. सरकार ने पहले से ही प्रवासी श्रमिकों की मदद करना शुरू कर दिया है, लेकिन, वे अपनी बारी का इंतजार नहीं कर रहे हैं और वे चलना शुरू कर रहे हैं. अंतरराज्यीय समझौते के अधीन होने पर, हर किसी को यात्रा करने का मौका मिलेगा. बल का उपयोग करना उल्टा पड़ सकता है. वे इसके लिए इंतजार कर सकते हैं. पैदल चलने की बजाय, रुकना चाहिए.
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उन्होंने आगे कहा कि अगर लोग नाराज हो जाते हैं और परिवहन के लिए इंतजार करने की बजाय पैदल यात्रा शुरू करते हैं, तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है. सरकार केवल निवेदन कर सकती है कि लोग न चलें.
इन दलीलों के आधार पर पीठ ने अंतरिम याचिका खारिज कर दी. अर्जी में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों का उल्लेख किया गया था और यह अदालत को प्रस्तुत किया गया था कि ऐसी ही कई अन्य घटनाएं हैं, जिसमें गरीब प्रवासी मजदूरों की भूख या सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है, जो पैदल यात्रा करके अपने मूल स्थानों पर लौट रहे थे.