नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित तारीख 17 फरवरी के बाद सेना में 14 साल की नौकरी पूरी करने वाली महिला सैन्य अधिकारियों को स्थाई कमीशन के लाभ प्रदान करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला अधिकारियों द्वारा मांगी राहत एक तरह से उसके फैसले पर पुनर्विचार करना है और यदि वह इसकी अनुमति देता है तो अधिकारियों के दूसरे बैच भी इसी तरह की राहत मांग सकते हैं.
न्यायालय ने 17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र को सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने पर तीन महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया था. चाहें वे 14 साल की सेवा की सीमा पार कर चुकी हों या सेवा के 20 साल.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक बार के उपाय के रूप में पेंशन योग्य सेवा की अवधि 20 साल तक पहुंचने का लाभ उन सभी मौजूदा एसएससी अधिकारियों को मिलेगा जो 14 साल से ज्यादा समय से सेवारत हैं.
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार के इच्छुक नहीं है क्योंकि इसमें जो राहत मांगी गई है वह फैसले पर पुनर्विचार के समान है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि यह आवेदन 19 महिला अधिकारियों ने दायर किया है जो मार्च में सेवानिवृत्त हुई हैं और वे स्थाई कमीशन का लाभ चाहती हैं.
लेखी ने कहा कि न्यायालय द्वारा निर्धारित तारीख फैसले का दिन अर्थात 17 फरवरी है लेकिन, कट आफ तारीख स्वीकार करने और स्थाई कमीशन प्रदान करने का सरकार का आदेश 17 जुलाई को आया.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'अगर हम कट-आफ तारीख में ढील देंगे तो इसका कोई अंत नहीं होगा. हम कहां लाइन खींचे? इसे लेकर मैं चिंतित हूं.'