नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देशभर के थानों में मानव अधिकारों का हनन रोकने के प्रयास में सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था को दुरुस्त करने के बारे में उचित आदेश पारित किया जाएगा.
न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने थानों में सीसीटीवी फुटेज कम से कम 45 दिन तक सुरक्षित रखने और इसके भंडारण की समुचित व्यवस्था के बारे में दायर याचिका पर सुनवाई पूरी की. पीठ ने कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा.
पीठ ने कहा, इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिये हमे अंतत: आदेश पारित करना होगा.
शीर्ष अदालत ने हिरासत में यातना से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान इस साल जुलाई में 2017 का वह मामला पुनर्जीवित किया था, जिसमें मानव अधिकारों का हनन रोकने के लिए देश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने, घटना स्थल की वीडियोग्राफी करने और केंद्रीय निगरानी समिति और प्रत्येक राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश में ऐसी ही समितियां गठित करने का आदेश दिया गया था.
इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने सुनवाई शुरू होते ही पीठ से कहा कि कई राज्यों ने 2017 के मामले में शीर्ष अदालत के आदेश के अनुपालन के बारे में तीन अप्रैल, 2018 को हलफनामे दाखिल किए हैं.
उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश ने 1117 थानों में 859 सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जबकि मिजोरम ने 40 थानों में 147, मणिपुर ने 87 और सिक्किम ने थानों में नहीं, बल्कि जेलों में दो सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं.
पीठ ने कहा कि उसे राज्यों में प्रत्येक जिले में कुल थानों की संख्या के बारे में अतिरिक्त हलफनामे की जरूरत है और वह देखना चाहती है कि थानों में लगे सीसीटीवी कैमरे काम कर रहे हैं और इनकी जिम्मेदारी निर्धारित करनी है.
दवे ने जवाब दिया कि इन सीसीटीवी कैमरों के काम करने की जिम्मेदारी थाना प्रभारी की होनी चाहिए.
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, जिनसे न्यायालय ने इस मामले में सहयोग करने का अनुरोध किया था, ने कहा कि राज्य सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित थानों में सीसीटीवी कैमरों के सुचारू ढंग से काम करने के लिए इन थानों के लिए बिजली आपूर्ति और इंटरनेट की सुविधा सुनिश्चित करनी होगी और इस संबंध में सभी के लिए प्रश्नावली जारी करनी होगी.