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भीमा कोरेगांव हिंसा मामला : आयोग ने शरद पवार को भेजा समन - summon to sharad pawar

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच कर रहे आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार को गवाह के तौर पर चार अप्रैल को पेश होने के लिए समन भेजा है. पढ़ें पूरी खबर...

शरद पवार
शरद पवार

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Published : Mar 18, 2020, 4:37 PM IST

पुणे : महाराष्ट्र के पुणे जिले में 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच कर रहे आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार को गवाह के तौर पर चार अप्रैल को पेश होने के लिए सम्मन भेजा है. पैनल के वकील आशीष सातपुते ने बुधवार को यहां यह जानकारी दी.

पवार को मुंबई में आयोग के समक्ष पेश होना पड़ेगा क्योंकि आयोग ने कोरोना वायरस के मद्देनजर सुनवाई वहां स्थानांतरित कर दी है. मार्च के अंतिम सप्ताह तक होने वाली सुनवाई अब 30 मार्च से चार अप्रैल के बीच होगी.

सातपुते ने बताया कि आयोग ने तत्कालीन एसपी (पुणे ग्रामीण) सुवेज हक, तत्कालीन अतिरिक्त एसपी संदीप पाखले, तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त, पुणे रवींद्र सेंगांवकर और तत्कालीन जिलाधीश सौरभ राव को भी समन किया है.

राकांपा प्रमुख बंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एन. पटेल की अध्यक्षता वाले आयोग के समक्ष आठ अक्टूबर 2018 को हलफनामा दायर किया था.

इस साल फरवरी में सामाजिक समूह विवेक विचार मंच के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष अर्जी दायर कर 2018 की जातीय हिंसा के बारे में मीडिया में पवार द्वारा दिए गए कुछ बयानों को लेकर उन्हें सम्मन भेजे जाने का अनुरोध किया था.

अपनी याचिका में शिंदे ने 18 फरवरी को पवार के संवाददाता सम्मेलन का हवाला दिया.

अपने हलफनामे में पवार ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तत्कालीन भाजपा सरकार और कानून एवं प्रवर्तन एजेंसियां कोरेगांव भीमा और उसके आसपास के इलाकों में रह रहे आम आदमी के हितों की रक्षा करने में नाकाम रहीं.

आयोग ने पिछले महीने शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस सरकार को अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए इस साल आठ अप्रैल तक की अंतिम समयसीमा दी थी.

गौरतलब है कि भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के दौरान एक जनवरी 2008 को भीमा कोरेगांव और आसपास के इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी.

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पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए 'उकसावे' वाले भाषणों से हिंसा भड़की.

पुलिस के अनुसार, एल्गार परिषद सम्मेलन के आयोजकों के माओवादियों से संपर्क थे.

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