नई दिल्ली : गन्ना किसानों को समय से ना होने वाले भुगतान की बात अक्सर खबरों में रहती है. खेती की ऊंची लागत के बावजूद समय से भुगतान ना होना और फिर सरकार द्वारा भी गन्ने की एसएपी (राज्य परामर्श मूल्य) न बढ़ना एक गंभीर समस्या है.
ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कृषि मामलों के विशेषज्ञ चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से विशेष बातचीत की है. पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2017 में 10 रुपये की बढ़ोतरी कीमतों में की गई थी, लेकिन वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने की कीमतों में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई है, जबकि अगर सरकार चाहती तो कुछ नीतिगत बदलाव के साथ किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता था.
आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में देश में चीनी का ओपनिंग स्टॉक 104 लाख तथा जबकि उत्पादन 332 लाख तथा घरेलू खपत 255 लाख टन और कुल निर्यात 38 लाख टन रहा.
अगर 2019-20 की बात करें तो चीनी का ओपनिंग स्टॉक 143 लाख टन है जिसका मतलब है कि लगभग 7 महीने की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदामों में रखी हुई है.
चीनी वर्ष 2019-20 के पहले दो महीनों अक्टूबर-नवंबर में देश मे चीनी का उत्पादन पिछले साल के 41 लाख टन के मुकाबले 19 लाख टन रह गया है.
अगर कुछ महीने पहले की बात करें तो यह स्थिति चिंताजनक जरूर थी जिस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चीनी मिलों को चीनी की जगह एथेनॉल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था, लेकिन उसके बाद मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण देशभर में गन्ने की फसल को काफी नुकसान हुआ और गन्ना का उत्पादन करने वाले राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने के पैदावार में कमी आई.
इस तरह से बीते साल की तुलना में इस साल गन्ने का उत्पादन लगभग 21% घटकर 260 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि घरेलू बाजार की खपत के लिए ही पर्याप्त होगा वर्ष 2019-20 के अगर पहले 2 महीनों की बात करें तो चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले घटकर महज 19 लाख टन रह गया है.
किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि 2019-20 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी का उत्पादन 1756 लाख टन और मांग 1876 लाख टन रहने की संभावना है. यानी उत्पादन मांग से 120 लाख टन कम रहेगा.