हैदराबाद : राजस्थान में जारी सियासी घमासान के बीच संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने नवीनतम घटनाक्रम को लेकर सवैधानिक दृष्टिकोण से अपने विचार रखे हैं. प्रस्तुत हैं उनसे खास बातचीत के प्रमुख अंश :-
सवाल : राजस्थान में विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए उन्हें होटलों में रखा जा रहा है. एंटी डिफेक्शन लॉ का कोई असर जमीन पर नहीं दिख रहा है. क्यों?
देखिए आंकड़े बताते हैं कि एंटी डिफेक्शन लॉ बनने से पहले दस या बीस साल में जितने डिफेक्शन हुए, उससे कई गुना ज़्यादा डिफेक्शन, लॉ बनने के बाद हुए. यह बात तो सही है कि एंटी डिफेक्शन लॉ सफल नहीं हुआ. क्योंकि पहले अकेला कोई एक विधायक डिफेक्ट करता था. अब एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत यह जरूरी हो गया कि ये ग्रुप्स में डिफेक्ट करें. जहां पहले एक आदमी डिफेक्ट करता था , तो अब दो-तिहाई विधायक एक साथ डिफेक्ट करते हैं.
सवाल : राजस्थान में बीएसपी ने भी अदालत का रुख यह कह कर किया है कि उनके छह विधायकों का कांग्रेस में विलय संवैधानिक नहीं है, क्योंकि बीएसपी नेशनल पार्टी है, तो विलय नेशनल लेवल पर होना चाहिए. संवैधानिक स्थिति क्या है?
जिस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े, उस पार्टी का मर्जर होना चाहिए. तो अगर टिकट किसी नेशनल पार्टी ने दिए थे, और नेशनल पार्टी मान्यता प्राप्त है, जो कि इस मामले में है, तो नेशनल पार्टी का विलय होना चाहिए और उसकी एक शर्त यह भी है कि विधायक दल के दो-तिहाई सदस्य विलय के लिए तैयार हों. यह तो संवैधानिक स्थिति है.
लेकिन बहुत सारे केसेज ऐसे हुए हैं, जहां स्पीकर ने दो-तिहाई सदस्यों के कहने पर मर्जर मान लिया. तो पूर्व दृष्टांत इसके पक्ष में हैं कि विधायक दल के दो-तिहाई सदस्य अगर कहेंगे तो विलय मान लिया जाए. दोनों तरफ से तर्क दिए जा सकते हैं. एक तरफ लिखित प्रावधान है और दूसरी तरफ पूर्व दृष्टांत हैं. अब मामला अदालत में है और अदालत ही निर्णय करेगी.
विधानसभा के सभी सदस्य अपनी स्वेच्छा से, जिधर चाहें वोट कर सकते हैं. वोट वैध होगा. पार्टी ह्विप का उल्लंघन करके वोट करना चाहें तो कर सकते हैं. अयोग्य ठहराए जाय या नहीं , स्पीकर तय करेंगे. लेकिन उससे वोट निरस्त नहीं होगा.
सवाल : बीएसपी के जिन छह विधायकों ने पिछले साल ही कांग्रेस सरकार ज्वाइन कर ली थी, उनको अब बीएसपी ने चेतावनी दी है कि शक्ति परीक्षण होने की परिस्थिति मे वे कांग्रेस के खिलाफ वोट दें. इसके क्या मायने हैं क्योंकि एंटी डिफेक्शन लॉ उन पर तो लागू होता नहीं.
देखिए, दो पक्ष हैं. एक तो दलगत राजनीति का पक्ष और दूसरा संविधान का पक्ष. संविधान की दसवीं अनुसूची के, जिसको एंटी डिफेक्शन लॉ कहा जाता है, मुताबिक जो भी विधायक हैं, चाहे वे किसी भी दल के हों, वे मतदान के लिए नितांत स्वतंत्र होंगे. ह्विप जारी किया जा सकता है, लेकिन उसे मानना जरूरी नहीं है.
एंटी डिफेक्शन लॉ तब सामने आता है, जब स्पीकर के यहां कोई अपील करे कि अमुक सदस्य ने अपनी पार्टी के ह्विप का उल्लंघन किया है. उसके बाद स्पीकर उस पर विचार करेंगे. बाकायदा एक ट्रिब्यूनल की तरह सुनवाई होगी और तब फैसला होगा. लेकिन वह बाद में होगा. वोट तो उनका वैध माना जाएगा बेशक अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया बाद में चले.
सवाल : दसवीं अनुसूची में साफ लिखा है कि विधायकों के डिसक्वालिफिकेशन को लेकर कोर्ट कुछ नहीं कर सकता, स्पीकर के फैसले को बेशक चुनौती दे दी जाए.
देखिए स्पीकर का फैसला सब्जेक्ट टू ज्यूडीशियल रिव्यू होगा. कोई भी उसके खिलाफ हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है. क्योंकि एंटी डिफेक्शन लॉ के अंतर्गत स्पीकर ट्रिब्यूनल की तरह काम करते हैं. इसलिए उसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.