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कोरोना : जानें क्यों स्वस्थ लोगों के डीएनए का अनुक्रमण कर रहे वैज्ञानिक

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Published : May 30, 2020, 2:02 PM IST

कोरोना वायरस का कहर दुनियाभर में जारी है. संक्रमित और मृत लोगों की बढ़ती संख्या के साथ, विशेषज्ञ इस महामारी को खत्म करने का इलाज खोजने में जुटे हुए हैं. इसके मद्देनजर शोधकर्ता उन आनुवंशिक दोषों की तलाश कर रहे हैं, जो किसी के लिए भी कोरोना वायरस से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ा सकते हैं. पढ़ें यह विशेष लेख...

study on coronavirus looks at genetics of healthy people
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हैदराबाद : कोरोना वायरस का कहर दुनियाभर में जारी है. संक्रमित और मृत लोगों की बढ़ती संख्या के साथ, विशेषज्ञ इस महामारी को खत्म करने का इलाज खोजने में जुटे हुए हैं.

कोविड-19 की समस्या को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक उन युवा, स्वस्थ वयस्कों और बच्चों के डीएनए का अनुक्रमण कर रहे हैं, जो किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित न होने के बावजूद भी कोरोना की चपेट में आए हैं.

इसके मद्देनजर शोधकर्ता उन आनुवंशिक दोषों की तलाश कर रहे हैं, जो किसी के लिए भी कोरोना वायरस से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ा सकते हैं.

सेंट लुइस (St. Louis) में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन (Washington University School of Medicine) में मैकडॉनेल जीनोम इंस्टीट्यूट (McDonnell Genome Institute) युवा, स्वस्थ वयस्कों और उन बच्चों के डीएनए का अनुक्रमण करने के लिए एक अध्ययन कर रहा है, जो किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित न होने के बावजूद भी कोरोना की चपेट में आए हैं.

बता दें, मैकडॉनेल जीनोम इंस्टीट्यूट (McDonnell Genome Institute) दुनियाभर में भाग लेने वाले 30 से अधिक जीनोम अनुक्रमण केंद्रों में से एक है.

शोधकर्ता ऐसे लोगों का भी अध्ययन करेंगे, जो कोरोना वायरस के बार-बार उजागर होने के बावजूद भी अब तक संक्रमित नहीं हुए हैं. कोविड-19 के चरम को समझना इस बीमारी के लिए नई चिकित्सीय रणनीतियों को जन्म दे सकता है.

शोधकर्ताओं ने उन लोगों का अध्ययन करने की भी योजना बनाई है, जो बार-बार होने वाले जोखिम के बावजूद, कोविड-19 का कारण बनने वाले वायरस सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित नहीं होते हैं. ऐसे व्यक्तियों में आनुवंशिक परिवर्तन हो सकते हैं, जो संक्रमण से बचाते हैं.

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में शोध का नेतृत्व कर रहे पीडियाट्रिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर एमडी, पीएचडी रुमेटोलॉजिस्ट मेगन ए कूपर (Megan A. Cooper) ने कोविड ह्यूमन जेनेटिक एफर्ट की शुरुआत की.

बता दें, यह एक अंतर्राष्ट्रीय परियोजना है, जिस पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच), और रॉकफेलर विश्वविद्यालय के सह-नेतृत्व में काम किया जा रहा है.

कूपर ने कहा, 'हमारे अध्ययन का पहला फोकस सार्स-सीओवी-2 संक्रमण की गंभीर प्रतिक्रियाओं वाले रोगियों को होगा. बता दें कि कूपर सेंट लुइस चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में जेफरी मोडेल डायग्नोस्टिक एंड रिसर्च सेंटर फॉर प्राइमरी इम्यूनो डेफिसिएंसीज का भी नेतृत्व कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि इन रोगियों को अनियंत्रित मधुमेह, हृदय रोग, पुरानी फेफड़ों की बीमारी नहीं है, जिनसे कोविड-19 के गंभीर जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है.

उदाहरण के लिए, हम कभी-कभी देखते हैं कि एक मैराथन धावक या आम तौर पर फिट स्वस्थ व्यक्ति इस बीमारी से संक्रमित नहीं होता है. वहीं स्वस्थ बच्चे इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं. हम इस तरह के लोगों पर शोध कर रहे हैं. हमें अस्पताल में इस तरह के मरीज 10% से भी कम मिलेंगे.

उन्होंने बताया कि इन रोगियों के आनुवांशिकी उन महत्वपूर्ण प्रतिरक्षा मार्गों को प्रकट कर सकती हैं, जिससे शरीर को वायरस से लड़ने की आवश्यकता होती है.

साथ ही यह ज्ञान उन उपचारों को भी जन्म दे सकता है, जिससे अन्य रोगियों को भी मदद मिल सकती है. इनमें वह लोग हैं, जिनके पास वायरस के लिए आनुवंशिक संवेदनशीलता नहीं है, जैसे कि मधुमेह या हृदय रोगी.

कूपर ने कहा कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली ने पहले कभी इस वायरस को नहीं देखा है. अभी हम दुनियाभर में कोविड-19 की गंभीर जटिलताओं को देख रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह आनुवंशिक कारकों और प्रतिरक्षा प्रणाली कारकों की जांच करने के लिए एक वैश्विक प्रयास करने जा रहा है, जो वास्तव में इस संक्रमण को नियंत्रित करते हैं.

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