नई दिल्ली : सुषमा स्वराज... भाषा, गरिमा, ज्ञान और स्वाभिमान. माथे पर चमकती बिंदी, मांग में प्रेम, बदन पर लिपटी साड़ी, भाषा और मुद्दों पर पकड़. जितनी सहज और सरल, उतनी ही कड़क. अद्भुत वक्ता, बेहतरीन सांसद और अद्वितीय विदेश मंत्री रहीं हैं, ऐसी भारतीय राजनेता जिन्हें मरणोपरांत भारत सरकार ने पद्म विभूषण के लिए चयनित किया है.
ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट सुषमा स्वराज को लिखने बैठेंगे तो शायद एक किताब में अनगनित पन्ने जुड़ जाएंगे. पहली मोदी कैबिनेट में विदेश मंत्रालय का पद संभालने वाली सुषमा स्वराज ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों के घरों और दिलों में जगह और पक्की कर ली थी. उनकी राजनीति, उनका कार्य और उनका स्वपन क्या था ये उनके ट्विटर हैंडल से पता लग जाएगा. आज भी उनके पेज पर एक ट्वीट पिन है Even if you are stuck on the Mars, Indian Embassy there will help you. और आखिरी ट्वीट, उसने तो सबको रुला ही दिया था.
कानून की इस छात्रा ने आपातकाल के दौरान आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और सक्रिय राजनीति से जुड़ गईं. संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, हरियाणवी इन भाषाओं को जब वे बोलती थीं तो जादू सा होता था.
यही वजह थी कि जिस वक्त भारतीय जनता पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन सरीखे नेता थे, तब सुषमा ने प्रखर वक्ता के रूप में पहचान बना ली थी. संसद हो, रैलियां हों, सभाएं हों या कोई गेट टुगेदर, सुषमा की भाषा का सम्मोहन लोगों को खींचता था. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सुषमा ने अपने ज्ञान और भाषा पर पकड़ से भारत का मान कई बार बढ़ाया.
किसी चैलेंज से नहीं घबराती थीं सुषमा स्वराज
राजनीति में सुषमा स्वराज कभी किसी चैलेंज से घबराती नहीं थी. यही वजह थी कि जब दिल्ली में बीजेपी को एक कद्दावर नेता की तलाश हुई, तो सुषमा ने एक छोटे से प्रदेश की कमान संभालने से गुरेज नहीं किया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं.
सोनिया गांधी के साथ संबंध नहीं थे मधुर
एक खास बात सुषमा के विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे संबंध थे, लेकिन सोनिया गांधी के साथ मधुरता कभी नहीं हो पाई. साल 2004 में जब यूपीए सत्ता में आई और ये चर्चाएं हुईं कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेंगी, तो सुषमा स्वराज के विरोध ने सबको चौंका दिया था. 'अगर मैं संसद में जाकर बैठती हूं तो हर हालत में मुझे सोनिया गांधी को माननीय प्रधानमंत्री कहकर संबोधित करना होगा. जो मुझे गंवारा नहीं है. मेरा राष्ट्रीय स्वाभिमान मुझे झकझोरता है. मुझे इस राष्ट्रीय शर्म में भागीदार नहीं बनना.'
ये सुषमा के शब्द थे और कहा था कि अगर सोनिया पीएम बनीं तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी, जमीन पर सोएंगी, सूखे चने खाएंगी. 1999 में बेल्लारी लोकसभा सीट से सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में सुषमा स्वराज 56 हजार वोटों से हार गई थीं. सुषमा स्वराज ने स्थानीय मतदाताओं से सहज संवाद के लिए कन्नड़ सीखनी शुरू की, एक महीने के अंदर वे कन्नड़ सीखने में सफल रही थी.
सुषमा स्वराज का निजी जीवन
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मीं सुषमा स्वराज के पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ सदस्यों में से एक थे. उनके माता-पिता का संबंध पाकिस्तान के लाहौर स्थित धर्मपुरा इलाके से था. 13 जुलाई 1975 को स्वराज कौशल से सुषमा स्वराज ने शादी की. दोनों आपातकाल के दौरान एक-दूजे के करीब आए थे. उनकी एक बेटी बांसुरी है.
सुषमा स्वराज का राजनीति करियर-
सुषमा स्वराज 70 के दशक से ही एबीवीपी से जुड़ गई थीं. आपातकाल के बाद वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. धीरे-धीरे पार्टी में उनका कद बढ़ता चला गया. जुलाई 1977 में वह देवी लाल की अगुवाई वाली जनता पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं. उस वक्त उनकी उम्र महज 25 साल थी. इस लिहाज से वह विधानसभा की सबसे युवा सदस्य थीं. इसके बाद वह 1987 से 1990 तक हरियाणा की शिक्षा मंत्री भी रहीं. 27 साल की उम्र में सुषमा स्वराज को जनता पार्टी (हरियाणा) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
- सुषमा स्वराज चार साल तक जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं.
- 4 साल तक इन्होंने हरियाणा राज्य में जनता पार्टी की अध्यक्ष का पद संभाला.
- वह भारतीय जनता पार्टी की अखिल भारतीय सचिव रहीं.
- 1977 में सुषमा स्वराज सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं, उस समय उनकी उम्र 25 वर्ष थी.
- अप्रैल 1990 में सुषमा स्वराज को राज्य सभा की सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था.
- 1996 में सुषमा स्वराज 11वीं लोकसभा के दूसरे कार्यकाल की सदस्य बनीं.
- 1996 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दिन की सरकार के दौरान. इस दौरान उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय संभाला था.
- 1998 में इन्हें तीसरी बार 12वीं लोकसभा की सदस्य के रूप में फिर से निर्वाचित किया गया था.
- 13 अक्टूबर से 3 दिसंबर 1998 तक, इन्हें दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचित किया गया.
- अप्रैल 2000 में सुषमा स्वराज को फिर राज्यसभा की सदस्या के रूप में निर्वाचित किया गया था.
- 30 सितंबर 2000 से 29 जनवरी 2003 तक इन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पद पर सेवा की.
- 19 मार्च से 12 अक्टूबर 1998 तक, वे सूचना एवं प्रसारण और दूरसंचार (अतिरिक्त प्रभार) विभाग में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहीं.
- 29 जनवरी 2003 से 22 मई 2004 तक, वे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री तथा संसदीय मामलों की मंत्री रहीं.
- अप्रैल 2006 में इन्हें फिर पांचवे सत्र के लिए राज्य सभा की सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था.
- 16 मई 2009 को सुषमा स्वराज को छठी बार 15वीं लोकसभा की सदस्य के रूप में चुना गया था.
- वे लोकसभा में 3 जून 2009 को विपक्ष की उप नेता बनी.
- 21 दिसंबर 2009 को सुषमा स्वराज विपक्ष की पहली महिला नेता बनी थीं और तब इन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के बाद यह पद ग्रहण किया था.
- 26 मई 2014 से 2019 तक सुषमा स्वराज भारत सरकार में विदेश मामलों की केंद्रीय मंत्री रहीं.
प्रमुख उपलब्धियां-
- सुषमा स्वराज को राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता होने का गौरव प्राप्त.
- वह पहली महिला मुख्यमंत्री रहीं.
- वह पहली महिला केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहीं.
- सुषमा स्वराज विपक्ष को पहली महिला नेता होने का भी गौरव प्राप्त था.
सुषमा स्वराज को मिले ये सम्मान
- सुषमा स्वराज को हरियाणा राज्य विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ वक्ता पुरस्कार दिया गया था.
- सुषमा स्वराज को वर्ष 2008 और 2010 में दो बार सर्वश्रेष्ठ संसदीय पुरस्कार मिला था. वह उत्कृष्ट संसदीय पुरस्कार को प्राप्त करने वाली पहली और एकमात्र महिला सांसद बनीं.
सुषमा स्वराज ने मोदी कैबिनेट में जब विदेश मंत्री का पद संभाला तब विश्व के हर कोने में जरूरतमंद भारतीय की मदद की. न सिर्फ इंडियन बल्कि दूसरे देशों के नागरिकों के लिए जितना संभव था उन्होंने भारत की तरफ से मदद का हाथ बढ़ाया. लोग प्यार से उन्हें सुष'मां' कहने लगे थे. उनका पिन ट्वीट उनकी सेवा के बारे में कहने के लिए काफी है और 6 अगस्त को अनुच्छेद 370 पर लिखा उनका आखिरी ट्वीट कि प्रधानमंत्री जी, मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी ने सबको रुला दिया था. 7 अगस्त को सुषमा ने हमसे शारीरिक तौर पर विदा जरूर ली लेकिन उनकी यादें कभी न मिट सकेंगी.