नागौर : 21 साल पहले यानी 1999 में 26 जुलाई के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी. हर साल इस दिन को 'कारगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान ने की थी. तीन मई 1999 को युद्ध शुरू हुआ था और इसका अंत 26 जुलाई, 1999 को करीब तीन महीनों बाद हुआ था. युद्ध में भारत के भी कई वीर सपूतों ने अपने प्राण गंवाए थे.
कारिगल में शहीद हुए जवानों में मरुधरा के वीरों ने भी अदम्य साहस दिखाया था और वीरगति प्राप्त की थी. राजस्थान की सुनहरी धरती ने ऐसे सपूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाकर कर्तव्य निभाया और देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए. ऐसे ही वीर जवानों में से एक थे राजस्थान में नागौर के बूढ़ी गांव के अर्जुन राम बसवाणा.
तीन मई को दुश्मनों ने की थी घुसपैठ
आज से 21 साल पहले तीन मई को कारगिल में दुश्मन की घुसपैठ की जानकारी मिलने पर जो पहली टुकड़ी दुश्मन की टोह लेने निकली थी. उसमें नागौर के बूढ़ी गांव के 23 साल के नौजवान अर्जुन राम बसवाणा भी शामिल थे. जिस दिन अर्जुन राम दुश्मन की टोह लेने निकले थे, उसके एक दिन बाद उन्हें छुट्टी पर घर आना था. घर पर उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं. घरवालों ने निर्जला एकादशी (24 जून) को उनकी शादी तय कर रखी थी, लेकिन वह घर नहीं पहुंच सके. उनसे पहले उनकी शहादत की खबर घर पहुंची और फिर 12 जून को तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर.
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माता भंवरी देवी और पिता चोखाराम की तो जैसे दुनिया ही लुट गई थी. सेना के रिकॉर्ड में उनकी शहादत की तारीख 15 मई दर्ज है. आज भी अर्जुन राम के बारे में बात करते ही बूढ़े माता-पिता का मन उदास और आंखें नम हो जाती हैं. अर्जुन राम की तस्वीरों को देखकर माता-पिता का मन एक पल उदास होता है, तो अगले ही पल सिर फख्र से ऊंचा और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
घर में चल रही थी शादी की तैयारियां
माता भंवरी देवी बताती हैं, 'जब फौज में चयन होने की चिट्ठी मिली तो मेरा अर्जुन पूरे गांव में सीना तानकर चलता और सबको गर्व से बताता. डरना तो उसने कभी सीखा ही नहीं था. फिर दुश्मन की क्या मजाल जो मेरे बेटे का हौसला तोड़ सकता. दुख इस बात का है कि वह बहुत जल्दी चला गया. हम यहां उसकी शादी की तैयारी कर रहे थे. गहने बनवा रहे थे. मेहमानों को बुलाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उसकी शहादत की खबर मिली.'
अर्जुन राम के पिता चोखा राम किसान हैं. अपने बेटे के बारे में बात करते हुए अनायास ही उनका हाथ मूंछों पर चला जाता है. वह मूंछों पर ताव देते हुए कहते हैं, 'अर्जुन कभी किसी से डरने वालों में से नहीं था. कैप्टन सौरभ कालिया के साथ निकला तो धोखे से दुश्मन ने घेर लिया. उसने अपने अफसर का आदेश मानकर ताबड़तोड़ फायरिंग की. लेकिन गोलियां खत्म होने पर दुश्मन के सैनिकों ने पकड़ लिया. कई तरह की यातनाएं देकर उन्होंने राज उगलवाने चाहे, लेकिन मेरे बहादुर बेटे ने मुंह नहीं खोला.'