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राम मंदिर आंदोलन की यादें: मुलायम ने कहा था- 'परिंदा पर नहीं मार सकता'

भगवान श्रीराम की जन्मस्थली में भव्य राम मंदिर का करोड़ों रामभक्तों का सपना पांच अगस्त को मूर्त रूप ले लेगा. भारत ही नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले भारतीयों को भी उस पल का इंतजार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीराम मंदिर के लिए भूमि पूजन करेंगे. इसके साथ ही धार्मिक पर्यटन के महत्वपूर्ण केन्द्र बनकर उभरे अयोध्या में विकास की एक नई गाथा का अध्याय शुरू होगा. इस स्पेशल रिपोर्ट में हरिद्वार के कारसेवकों की जुबानी राम मंदिर आंदोलन की कहानी सुनिए.

Memories of Ram temple movement
राम मंदिर आंदोलन की यादें

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Published : Aug 4, 2020, 1:58 PM IST

देहरादून :आ गई वह शुभ घड़ी, जब पांच अगस्त 2020 को राममंदिर ही नहीं एक नए युग का भी भूमिपूजन होना है. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे तो हिंदुओं की 500 साल पुरानी मुराद पूरी होगी. इस दिन तक पहुंचने के लिए हिंदुओं ने बहुत संघर्ष किए. राम मंदिर के लिए कारसेवा हुई. कई लोगों ने राम मंदिर के लिए अपने प्राण दिए. उस आंदोलन का हिस्सा रहे दो खास लोगों के जेहन में वो दृष्य आज भी ताजा हैं.

राम मंदिर आंदोलन ने बदल दिया था सियासत का रुख.

राम मंदिर आंदोलन के योद्धा उमेश कुमार श्रीवास्तव की यादें

हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ भगवान श्री राम का ये मंदिर काफी जद्दोजहद के बाद अब बनने जा रहा है. इसके पीछे कई लोगों के बलिदान हैं. राम मंदिर संघर्ष के पीछे कई लोगों की भूमिका रही है. इनमें हरिद्वार के संत और आम नागरिक भी हैं जिन्होंने राम मंदिर के लिए काफी संघर्ष किया है. अब जब राम मंदिर बनने जा रहा है तो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का धन्यवाद करते हुए अपने बीते दिनों की याद ताजा कर रहे हैं. बता रहे हैं कि किस तरह उन्होंने राम मंदिर के लिए संघर्ष किया. उन्होंने और उनके साथियों ने राम मंदिर निर्माण के लिए कितने कष्ट झेले.

पहले चरण से ही राम मंदिर आंदोलन से जुड़े थे उमेश श्रीवास्तव

बीते दिनों को याद करते हुए विश्व हिंदू परिषद के हरिद्वार जिले के तत्कालीन महामंत्री उमेश कुमार श्रीवास्तव बनाते है कि हम लोग श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रथम चरण से ही विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए थे. उस समय मैं विश्व हिंदू परिषद का हरिद्वार से जिला महामंत्री हुआ करता था.

मुलायम ने किया था ऐलान- 'परिंदा भी पर नहीं मार सकता है'

जब 30 अक्टूबर 1990 को अशोक सिंघल ने कार सेवा का आह्वान किया तो मुलायम सिंह यादव ने ऐलान किया कि अयोध्या में 'परिंदा भी पर नहीं मार सकता है'. हम हरिद्वार क्षेत्र से 5 लोग दीपावली के त्योहार से पहले ही अयोध्या की ओर निकल पड़े. उस वक्त अयोध्या के हालात ठीक नहीं थे. अयोध्या में कार सेवकों को घर से निकाल कर मारा-पीटा जाता था.

राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी यादें

जिस घर में रुके वहां पुलिस मारती थी छापा

जिस स्थान पर हम रहा करते थे, वहां पर एक पंडित जी थे जिन्होंने हमें अपने घर पर रहने को स्थान दिया था. हालात कुछ ठीक नहीं थे. जिनके घर पर कारसेवक मिलते थे उन्हें भी बहुत मारा जाता था. इसके बावजूद भी पंडित जी ने हमें अपने घर पर रखा. उस समय हमें ऐसा लगता था कि शायद ही हम घर वापस जा पाएंगे. क्योंकि अयोध्या का माहौल उस समय बहुत अलग था. समाज भी हमसे बचता था. क्योंकि समाज को लगता था अगर हम इनके साथ रहेंगे तो हम भी शायद मारे जाएंगे. अब जाकर हमें उन दिनों किए गए संघर्ष का लाभ मिलने जा रहा है.

आडवाणी के साथ पीएम नरेंद्र मोदी.

पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी का धन्यवाद

हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिल से आभार व्यक्त करते हैं. उन्होंने हमारा देखा हुआ सपना अब साकार कर दिखाया है. इस कोरोना काल के कारण हम राम जन्म भूमि पूजन के लिए अयोध्या तो नहीं जा पा रहे हैं लेकिन जैसे ही यह कोरोना का संकट देश से खत्म होगा वैसे ही हम रामलला के दर्शन को एक बार फिर अयोध्या जरूर जाएंगे.

लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा.

राम मंदिर आंदोलन के योद्धा स्वामी रूपेंद्र प्रकाश की यादें

प्राचीन अवधूत मंडल के महंत रूपेंद्र प्रकाश बीते दिनों को याद कर बताते हैं कि उस वक्त हम बाल्यावस्था में हुआ करते थे. राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था. हमारे वरिष्ठ अधिकारी हमें जो दिशा-निर्देश दिया करते थे हम उसका पालन किया करते थे. उस वक्त एक अलग ही उत्साह और जुनून हुआ करता था.

कोठारी बंधुओं के बलिदान ने भरा जोश

उस वक्त शरद कोठारी बंधु का जो बलिदान हुआ था उसने युवाओं में एक जुनून भर दिया था कि भगवान श्रीराम हमारे आराध्य हैं. इसलिए इस स्थान पर हमारे आराध्य भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का निर्माण हो. यह सपना था. इसी के लिए हमने उस आंदोलन में भाग लिया था.

जनसभा का अभिवादन करते आडवाणी

राम मंदिर के लिये रूपेंद्र प्रकाश ने ले लिया संन्यास

स्थिति यहां तक आ गई कि हमने अपना घर परिवार तक छोड़ दिया था. अपना जीवन भगवान श्री रामचंद्र के काम आए उसी श्रद्धा में हमने सन्यास ग्रहण कर लिया. हमारा लक्ष्य यही था कि भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बने. रामराज्य स्थापित हो. उस वक्त के अनेकों अनुभव हैं.

स्कूल ट्रिप के बहाने राम मंदिर आंदोलन में जाते थे

हम घर से चोरी छिपे किसी न किसी तरीके से स्कूल या कॉलेज के ट्रिप का बहाना बनाकर घर से निकल जाया करते थे. फिर कई दिन बाद घर लौट कर आते थे. घरवालों को जब यह सारी हकीकत पता लगी तो घरवाले डांटते थे. समझाते भी थे कि इस तरह के कार्य मत करो. मर जाओगे. गोली लग जाएगी. क्योंकि तब ऐसा ही वातावरण हुआ करता था. इसके बावजूद हम नहीं डरे और राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए डटे रहे.

पढ़ें : राम मंदिर आंदोलन के वह चेहरे जिन्हें आप भूल नहीं सकते

खुशी है कि अपने जीवन में देख लेंगे राम मंदिर

अब हमें अपने जीवन काल में ही राम मंदिर देखने को मिलेगा जो कि हमारे लिए काफी सौभाग्यशाली क्षण है. इस मंदिर के पीछे कई लोगों का बलिदान है जोकि बेकार नहीं जा सकता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हम दिल से आभार करते हैं जिनके सानिध्य में हमें राम मंदिर देखने को मिलेगा.

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