दुर्ग : सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं...यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं छत्तीसगढ़ महतारी के उस बेटे पर जिसने भारत माता की आन-बान और शान के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश के कई वीरों सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया. इन्हीं में से एक थे भिलाई के रहने वाले वीर चक्र से सम्मानित शहीद कौशल यादव. हिन्दुस्तान का शीष न झुकने पाए, इसके लिए कौशल अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे. ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ के पराक्रम और शौर्य से भरे उस वीर की जयगाथा सुना रहा है, जिसके लहू का एक-एक कतरा 'भारत माता की जय' कहता रहा.
कारगिल युद्ध में शहीद हुए कौशल यादव का जन्म चार अक्टूबर 1969 को भिलाई में हुआ था. उनके पिता का नाम रामनाथ यादव और मां का नाम धनेश्वरी देवी है. कौशल को बचपन से घरवाले लाला कहकर पुकारते थे, किसे पता था कि यादव परिवार के घर का लाला माटी का लाल साबित होगा और वीर चक्र से सम्मानित होगा.
पढ़ाई से ज्यादा खेल में लगता था कौशल का मन
शहीद कौशल की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय BSP स्कूल (भिलाई) में पूरी हुई. कौशल की रुचि पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा नहीं थी, लेकिन खेलकूद में उनका बहुत मन लगता था. माता-पिता जब उन्हें पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने के लिए कहा करते थे, तो लाला का जवाब होता था, 'जब सेना में जाऊंगा तब खूब खेलूंगा.' स्कूली जीवन में वे फुटबॉल, बॉक्सिंग और अच्छे एथलीट थे.
बचपन से ही था फौज में जाने का सपना
जब कौशल यादव भिलाई के कल्याण कॉलेज में बीएससी के प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनका चयन भारतीय सेना में हो गया. खबर की जानकारी मिलते ही लाला की खुशी का ठिकाना नहीं था. बचपन से ही फौज में जाने की उनकी बड़ी इच्छा को देखते हुए परिजनों ने उन्हें कभी रोकने की कोशिश भी नहीं की.
बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले-बढ़े कौशल यादव छुट्टियों में घर आते थे. घर आने के बाद वे ज्यादातर अपना समय अपने जुड़वा भतीजों के साथ खेलने और घूमने में ही बिताते थे. उन्हें बच्चों से बेहद स्नेह था और बच्चों को उनसे.
जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ थे कौशल
साल 1989 से सेना की नौ पैरा यूनिट (बी ग्रुप) स्पेशल सिक्योरिटी आर्मी में वह अपनी सेवा देते रहे. अपनी सेवा की पूरी अवधि में वे जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ रहे. 26 जनवरी 1998 को कश्मीर के विशेष अभियान में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सेनाध्यक्ष ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था.
पांच पाकिस्तानी सैनिकों पर दागी थी गोलियां
साल 1999 में कारगिल की लड़ाई में नेतृत्व कर रहे कौशल यादव और उनके साथियों को जुलु टॉप को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह पूरे जोश, उत्साह और दृढ़ संकल्प के साथ चढ़ाई वाले दुर्गम पहाड़ी पर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लगातार चढ़ते गए.
वीर चक्र से सम्मानित हैं शहीद कौशल
25 जुलाई 1999 को शत्रु सेना ने लगातार ऊपर से गोलीबारी की, जिसके बावजूद कौशल यादव नहीं रुके. कौशल ने पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. गोलियों से बुरी तरह शरीर छलनी होने के बाद भी कौशल ने हिम्मत नहीं हारी और जुलु टॉप को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराया. कौशल ने जुलु टॉप पर विजय पताका के रूप में भारत का तिरंगा फहराया. देश की शान में लड़ने वाले योद्धा कौशल मां भारती का झंडा फहराकर, भारतीय सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले कौशल यादव को उनके अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया. उनकी शहादत लोगों को हमेशा प्ररेणा देती रहेगी.
छत्तीसगढ़ में शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना
छत्तीसगढ़ खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने शहीद कौशल की स्मृति में जूनियर खिलाड़ियों के लिए राज्य स्तरीय शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना की. कौशल भिलाई के हुडको सेक्टर के रहने वाले थे. जिस कॉलोनी में वह रहते थे, उसका नाम बदलकर शहीद कौशल यादव कर दिया गया. हर साल 25 जुलाई को हुडको के स्मारक स्थल में शहीद कौशल यादव को श्रद्धांजलि दी जाती है. जहां आम नागरिकों के साथ ही जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन के लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.