नई दिल्ली : प्याज की कीमतों में उछाल पर अंकुश लगाने के लिए इसका आयात करने को बाध्य होने के बाद अब केंद्र सरकार को यह डर है कि प्याज कहीं गोदामों में पड़ी-पड़ी सड़ न जाए. इस आशंका का कारण यह है कि केंद्र द्वारा परिवहन लागत की पेशकश के बावजूद राज्यों ने इन्हें खरीदने में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है.
उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि केंद्र, राज्यों को 55 रुपये प्रति किलोग्राम की बंदरगाह पर बैठने वाली दर से प्याज की पेशकश कर रहा है और वह इन प्याजों के परिवहन की लागत भी वहन करने को तैयार है.
केंद्र ही अकेले प्याज का आयात कर सकता है और उसके बाद यह राज्यों का जिम्मा बनता है कि वो उपभोक्ताओं को इसकी खुदरा बिक्री कर पहुंचाएं.
खुदरा प्याज की कीमतें सितंबर के अंत तक बढ़ने लगी थीं और दिसंबर में यह 170 रुपये प्रति किलो की ऊंचाई पर जा पहुंची. इसके बाद केंद्र सरकार को तुर्की और मिस्र जैसे देशों से प्याज आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ा. बाद के हफ्तों में, बाजार में नई खरीफ की फसल के आगमन के साथ दरें नरम होने लगीं.
पासवान ने संवाददाताओं से कहा, 'अभी तक, हमने 36,000 टन प्याज का अनुबंध (आयात) किया है. इसमें से, 18,500 टन शिपमेंट भारत में पहुंच गया है, लेकिन राज्यों ने केवल 2,000 टन लिया है. वो भी बहुत मान मनौव्वल के बाद. हम इन्हें खपाने को लेकर चिंतित हैं क्योंकि यह खराब होने वाली वस्तु है.'
उन्होंने कहा, 'कल, कोई अदालत न चला जाए और कहे कि आयातित प्याज सड़ रही थी.'