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ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए गंभीर नहीं हैं राज्य सरकारें

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 में चार सप्ताह के अंदर ग्राम न्यायालय स्थापित करने का आदेश दिया था, बावजूद इसके ग्रामीण गरीब तबके के लिए सुलभ न्याय उपलब्ध कराने की मंशा साकार नहीं हो पा रही है. राज्य उतनी रुचि नहीं दिखा रहे हैं. हाल ही में विधि और न्याय मंत्री ने बताया था कि 12 राज्यों ने अब तक 395 ग्राम न्यायालय ही अधिसूचित किए हैं.

ग्राम न्यायालय
ग्राम न्यायालय

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Published : Feb 1, 2021, 10:31 PM IST

हैदराबाद :114वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण गरीब तबके के लिए सुलभ न्याय उपलब्ध कराने की मंशा से ग्राम न्यायालय स्थापित करने की सिफारिश की थी. इस पर न्याय मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत संसद में 'ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008' पारित किया था. 2 अक्टूबर, 2009 को गांधी जयंती पर इसे लागू किया गया, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि कई राज्य इसके लिए गंभीर नहीं हैं.

संसद के मानसून सत्र में विधि और न्याय मंत्री ने एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि 12 राज्यों ने अब तक 395 ग्राम न्यायालय को अधिसूचित किया है. मंत्री ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार ने ग्राम न्यायालय की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता भी दी थी।

जानें क्या है ग्राम न्यायालय की संरचना

  • ये एक तरह की मोबाइल अदालतें हैं, जिनमें एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायाधीश होता है.
  • न्यायाधीश की नियुक्ति संबंधित राज्य के हाई कोर्ट की सलाह पर की जाती है.
  • ग्राम न्यायालय में सिविल और आपराधिक दोनों तरह के मामलों की सुनवाई की जाती है. आपराधिक मामलें में ये दो साल तक की सजा सुनाने में सक्षम हैं.
  • ग्राम न्यायालय में सुलहकर्ता नियुक्त किए जाने थे, ताकि सुलह-समझौतों से मामले निपटाए जा सकें.
  • आपराधिक मामलों में अपील सत्र न्यायालयों में की जा सकती है. अपील करने के छह महीनें के भीतर सुनवाई का निपटान जरूरी होता है.

ग्राम न्यायालय स्थापित करने का उद्देश्य

  • ग्राम न्यायालय स्थापित करने का एक मकसद ये भी था कि गांवों में होने वाले विवाद अक्सर लंबे खिंचते हैं. ग्राम स्तर पर सुनवाई होने से सुलह की उम्मीद ज्यादा होगी.
  • ग्राम न्यायालय स्थापित होने से विवाद वहीं निपटने की संभावना ज्यादा रहेगी. लोगों के सरल और सुलभ न्याय मिल सकेगा. बड़ी अदालतों पर केस का बोझ कम होगा.

दयनीय स्थिति को लेकर जनहित याचिका

द नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटी फॉर फास्ट जस्टिस नामक एक एनजीओ ने सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में ग्राम न्यायालय स्थापित करने के मामले में अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा था कि 2017 तक 2,500 ग्राम न्यायालय स्थापित किया जाने थे. 11 राज्यों ने इसके लिए 320 ग्राम न्यायालय अधिसूचित किए थे. वहीं सितंबर 2019 तक देशभर में केवल 204 ग्राम काम कर रहे थे.

करीब एक दशक बाद भी 18 से अधिक राज्यों ने एक भी ग्राम न्यायलय को अधिसूचित नहीं किया था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्यों के साथ केंद्र सरकार से भी इस पर जवाब मांगा था. फरवरी 2020 में शीर्ष कोर्ट ने 18 राज्यों को चार सप्ताह के भीतर ग्राम न्यायालय स्थापित करने के आदेश दिए थे. वावजूद इसके राज्य गंभीर नहीं हैं.

ग्राम न्यायालय को लेकर प्रशासन भी खास ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा है. पुलिस अधिकारियों, वकीलों और अन्य पदाधिकारियों की अनिच्छा के कारण भी इनका प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है. वित्तीय बाधा भी बड़ा कारण है. वहीं, कई राज्यों ने तालुक स्तर पर नियमित अदालतें स्थापित की हैं, जिससे इस तरह के संस्थानों की आवश्यकता कम हो गई है. फैमिली कोर्ट और लेबर कोर्ट जैसे मुकदमों के फोरम भी स्थापित हुए हैं

संसदीय समिति ने जताई निराशा

2007 में एक संसदीय स्थायी समिति ने कहा था ' न्याय तब तक जल्दी और सुलभ नहीं हो सकता जब तक अदालतों को अदालतों के कार्यभार के अनुरूप नहीं बनाया जाता.' हाल ही में संसद को सौंपी अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने कहा था कि ग्राम न्यायालयों में बहुत क्षमता है लेकिन अभी तक इसका अहसास नहीं किया गया है. ग्राम न्यायालय भारतीयों के लिए न्याय को अधिक सुलभ, सस्ता प्राप्त करने में अहम भूमिका निभा सकते थे, लेकिन ये शर्म की बात है कि हम ये अभी तक नहीं समझ पाए हैं.

पिछले चार साल में अधिसूचित ग्राम न्यायालय का राज्यवार विवरण
राज्य 2017 2018 2019 2020
1 ओडिशा --- 06 --- ---
2 महाराष्ट्र --- 16 --- ---
3 हरियाणा --- 01 --- ---
4 उत्तर प्रदेश --- 09 --- ---
5 आंध्र प्रदेश --- --- --- 42

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