नई दिल्ली : राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर मुस्लिम पक्षकारों ने स्पष्ट कहा है कि वे लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे. इन पक्षकारों में सुन्नी वक्फ शामिल नहीं है. जो मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता समिति के प्रस्ताव के खिलाफ हैं उन्होंने वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर उन्होंने हैरानी भी जताई.
दरअसल, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति ने शीर्ष न्यायालय में एक सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट दाखिल कर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच एक तरह के समझौते का संकेत दिया है, जिसमें वक्फ बोर्ड कुछ खास शर्ते पूरी होने पर 2.2 एकड़ विवादित स्थल पर अपना दावा छोड़ने के लिये राजी हो गया है.
इस तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी शामिल थे.
शुक्रवार को मुख्य मुस्लिम वादियों एम सिद्दीक और मिसबाहुद्दीन के कानूनी प्रतिनिधियों के वकील ऐजाज मकबूल तथा मुस्लिम पक्षकारों के चार अन्य अधिवक्ताओं ने एक बयान में कहा, 'हम सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील शाहिद रिजवी के हवाले से मीडिया में आ रही इन खबरों से हैरान हैं कि उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड बाबरी मस्जिद स्थल पर अपना दावा वापस लेने का इच्छुक है.'
वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट मीडिया में लीक की गई और वे प्रक्रिया में अपनाई गई कार्यप्रणाली को तथा मुकदमा वापस लेने के लिये सुझाये गये समझौता फार्मूला को स्वीकार नहीं करते हैं.
बयान में कहा गया है, 'इस तरह, हम यह पूरी तरह से स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय में हम वादी हैं और हम प्रेस को लीक किये गये प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं...ना ही मध्यस्थता के लिये अपनाई गई कार्यप्रणाली को स्वीकार करते हैं....'
इसमें कहा गया है, 'लगभग सभी मीडिया संस्थानों और अखबारों ने यह प्रसारित एवं प्रकाशित किया कि उप्र सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड कुछ शर्तों पर अपना दावा छोड़ने के लिए राजी हो गया है. यह खबर या तो मध्यस्थता समिति ने या निर्वाणी अखाड़ा ने लीक की जो मस्जिद या अन्य पर अधिकार का दावा करता है.'
इसमें यह भी कहा गया है कि न्यायालय ने इस तरह की कार्यवाही को गोपनीय रखने का निर्देश दिया था.