कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों की नजर में युद्ध से ऊब चुके हिंद महासागर के इस द्वीपीय देश की मौजूदा व्यवस्था में मर्दानगी की एक मजबूत भावना है. शक्तिशाली पुरुष की छवि वाली इस राजनीतिक अपील को मान रहे हैं. हालांकि इसे मानने वाले बहुसंख्यक हैं जो धार्मिक रूप से सिंहल बौद्ध हैं. श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट का नेतृत्व कर रहे दो राजपक्षे भाई राष्ट्रपति के रूप में और अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नेतृत्व कर चुके हैं. इनकी अपील को धर्म-संप्रदाय से अपील समझा जा रहा है जो चुनावी जीत का एक फॉर्मूला है, जिसे वे पांच अगस्त को तब भुनाएंगे जब श्रीलंका अपनी नई संसद का चुनाव करेगा.
सरकार अपनी मजबूत छवि को फिर से पेश करना चाहती है. यह देश खुद को एकमात्र दक्षिण एशियाई राष्ट्र के रूप में पेश करता है जिसने कोविड-19 महामारी को न्यूनतम मृत्यु दरों में से एक (कुल 11 मौतों के साथ) नियंत्रण में रखा. दुनिया के कुछ हिस्सों में जहां अब भी लॉकडाउन जारी है तो यहां सरकार पूरे देश में संसदीय चुनाव कराने में सक्षम है.
देश की व्यावसायिक राजधानी कोलम्बो जिले के एसएलपीपी उम्मीदवार विमल वीरवासा को हाल में एक जनसभा में यह कहते सुना गया कि यह राजनीतिक नेतृत्व की असली परीक्षा है. यह एक जनभावना है कि राजपक्षे भाइयों ने अच्छा काम किया है और उन्हें बनाए रखना है. पांच अगस्त को कुल 70 राजनीतिक दल, 313 स्वतंत्र समूह और 7,452 उम्मीदवार चुनावी मैदान में होंगे.
एसएलपीपी को कुछ प्रत्यय पत्र (क्रेडेंशियल्स) हैं जिसने चुनाव के दौरान उसे आगे बढ़ाया है. वह यह है कि शक्तिशाली राजपक्षे भाइयों को राष्ट्रीय नायक माना जाता है, जिन्होंने लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (एलटीटीई) के खिलाफ लंबे समय तक चले युद्ध को समाप्त कर दिया, सामान्य स्थिति की भावना बहाल की, (चीन से बहुत अधिक कर्ज लेकर) देश में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं शुरू कीं.
इस मिथक को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय चुनावी सफलता अल्पसंख्यक मतों को प्राप्त करने की क्षमता पर निर्भर करती है. इतना ही नहीं एक ऐसा नेतृत्व जिसने कोविड- 19 जैसे स्वास्थ्य आपातकाल को नियंत्रण में रखा है. ऐसी साख भले ही जरूरी चुनावी अपील करती है, इसके बाद भी श्रीलंका के दो सबसे शक्तिशाली राजनीतिक भाइयों गोटाभाया राजपक्षे और दो बार राष्ट्रपति रहे बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के मंच पर बेवजह नोटों की बौछार हो रही है.
संसद की सत्ता हासिल करने की उनकी सामूहिक जरूरत के अलावा भी राजपक्षे भाइयों के मोर्चों को एकजुट रखने के लिए जाना जाता है, जो एक सामान्य मतदाता के लिए अपने आप में एक आकर्षण हैं. इसके कारण काफी अलग दिखते हैं, लेकिन मतदाताओं को यह नहीं समझाया जाता कि ये केवल सत्ता पाने के लिए दिख रहे हैं.
दो तिहाई बहुमत
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने सदन में दो तिहाई बहुमत की मांग की है, ताकि पूर्व राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना और पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के 2015 के सुधारवादी शासन की ओर से शुरू किए गए संविधान में 19वें संशोधन को दुरुस्त किया जा सके. राष्ट्रपति चाहते हैं कि 1978 की संविधान की स्थिति बरकरार हो जब राष्ट्रपति आजादी के साथ कार्यपालिका की शक्तियों का आनंद लेते थे.
इसके विपरीत 19वें संविधान संशोधन ने राष्ट्रपति के कार्यकारी शक्तियों में कमी की और प्रधानमंत्री की शक्तियों को बढ़ाया और स्वतंत्र आयोगों की स्थापना करके प्रमुख सार्वजनिक संस्थानों को राजनीतिकरण से मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया. यह स्वरूप राष्ट्रपति के लिए एक अभिशाप है, खासकर जिसने आत्म-अनुशासन के आधार पर एक भला समाज बनाने का संकल्प लिया हो.
इस प्रक्रिया में सेना के लोगों को सार्वजनिक सेवा में शामिल किया गया है, उनमें से कई को सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं में प्रमुख पदों पर रखा है. इससे मतदाताओं को समझ नहीं आता है कि इससे केवल सत्ता की संगीत मंडली देखने को मिलती है.
प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के लिए यह चुनाव बिना उलटफेर के बारे में है. संविधान के 19वें संशोधन ने एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री बनाया है और पहले की स्थिति के विपरीत, कार्यकारी और विधायी अंगों के बीच अधिक संतुलन स्थापित किया है, जबकि पहले प्रधानमंत्री का पद मात्र रस्मी होता था. उनकी अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता और सरकारी पैसे पर नियंत्रण की आवश्यकता राजपक्षे को जनता से अलग तरह से अपील करा रही है.
अभी के लिए, यह आगामी चुनाव जीतने का मामला है चुनाव के बाद उनकी ओर से अपने उद्देश्य के लिए संसद का मार्गदर्शन करने की संभावना है.
सत्तारूढ़ व्यवस्था को आराम से जीतना ही है. इसमें योगदान देने वाले कई कारक हैं जो इस अवसर को बढ़ाते हैं. जैसे बताया गया मजबूत नेतृत्व, सूचना नियंत्रण, एक अच्छी तरह से स्थापित प्रचार तंत्र और सार्वजनिक संस्थानों का चुपके से किया गया सैन्यीकरण, जिसे बाद में श्रीलंका के समाज में अनुशासन और दक्षता की आवश्यकता को देखते हुए बहुत जरूरी माना गया.
संसदीय चुनावों में मुख्य उम्मीदवार राजपक्षे के लिए विभाजित विपक्ष सबसे बड़ा वरदान है. कोई एक पार्टी दो में विभाजित हो जाती है और विपक्षी वोट को विभाजित करती है.