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नवरात्रि स्पेशल: भक्तों की सभी चिंताओं को दूर करती है मां चिंतपूर्णी

मां चिन्तपूर्णी का मंदिर ऐतिहासिक और प्राचीन वट वृक्ष के नीचे में स्थित है. यहीं माईदास को स्वप्न में दिव्य कन्या के तौर पर प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे. यह अति प्राचिन वट वृक्ष किस युग का है इसका अनुमान लगाना कठिन है.

माता चिंतपूर्णी देवी का मंदिर

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Published : Sep 29, 2019, 10:42 AM IST

Updated : Oct 2, 2019, 10:31 AM IST

ऊना: माता चिंतपूर्णी देवी का मंदिर भारत का प्राचीन मंदिर है. ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में स्थित है. चिंतपूर्णी मंदिर को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है. मां चिंतपूर्णी देवी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में एक है. मां चिंतपूर्णी देवी के दर्शनों के लिए भक्त पूरे भारत से आते हैं. ऐसा माना जाता है कि चिंतपूर्णी मंदिर की स्थापना एक सारस्वत ब्राह्मण माई दास ने की थी. आज भी उनके वंशज चिंतपूर्णी में रहते हैं और मंदिर में पूजा करते हैं.

साल भर यहां देश विदेश से हजारों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं, लेकिन नवरात्रों में यहां भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है. माना जाता है कि दर्शन भर से ही भक्तों को समस्त चिन्ताओ से मुक्ति मिलती है. माता के यहां पिंडी रूप में पूजा होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड चक्कर लगा रहे थे, इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था. इस दौरान यहां सत्ती के चरण गिरे थे. इसलिए इसे चिंतपूर्णी के नाम से जाना जाता है. इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहा जाता है.

ईटीवी भारत रिपोर्ट

प्राचीन वट वृक्ष
मां चिन्तपूर्णी का मंदिर ऐतिहासिक और प्राचीन वट वृक्ष के नीचे में स्थित है. यहीं माईदास को स्वप्न में दिव्य कन्या के तौर पर प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे. यह अति प्राचिन वट वृक्ष किस युग का है इसका अनुमान लगाना कठिन है. भक्तगण मन्नत मान कर इसी वट वृक्ष पर लाल डोरी (कलावा) बांधते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने पर माता के दरबार में नतमस्तक होकर धागे को खोल देते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस वट वृक्ष में धागा बांधने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

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ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार चिंतपूर्णी चालीसा में लिखा है कि माता चिंतपूर्णी चार शिवलिंग में घिरी हुई हैं. इनमें से एक मंदिर गगरेट के पास शिववाड़ी में स्थित है. दूसरा मंदिर अंब के पास कालेश्वर धाम के पास है. सतलुज दरिया बनने के समय यह दो मंदिर अलोप हो गए थे.

नवरात्रों में चिंतपूर्णी मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता है. सुबह छह बजे से माता के शाही स्नान के बाद 7 बजे से लेकर 8 बजे तक देवी मां की महाआरती होती है. नवरात्रों के दौरान 9 दिन तक मेलों का भी आयोजन किया जाता है. इस दौरान श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसके लिए प्रशासन पुख्ता प्रबंध करता है.

Last Updated : Oct 2, 2019, 10:31 AM IST

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