उज्जैन :विघ्नहर्ता, मंगल कर्ता, गौरी पुत्र गणेश भगवान, गणेश के जितने नाम हैं उतना ही दिव्य उनका स्वरूप भी है. एक साल बाद बप्पा फिर अपने भक्तों के घर आ गए हैं. भक्त भी पलक बिछाकर बप्पा की पूजा अर्चना में मग्न हैं. मान्यता है कि इन 10 दिनों में भगवान गणेश अपने भक्तों के घर रहते हैं और उनके दुख हरकर ले जाते हैं तो आज हम आपको विघ्नों को हरने वाले गणेश भगवान के ऐसे मंदिर लेकर चलते हैं जहां गणपति बप्पा की स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन होते हैं.
बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से 6 किलोमीटर दूर जावासा गांव में भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर है, जिसे चिंतामन गणेश के नाम से जाना जाता है. यहां पार्वती नदंन तीन स्वरूपों में विराजमान हैं. पहला रुप चिंतामन गणेश, दूसरा रुप इच्छामन गणेश और तीसरा रुप सिद्धिविनायक गणेश का है. चिंतामन गणेश का श्रृंगार सिंदूर से किया जाता है, श्रृंगार से पहले दूध और जल से उनका अभिषेक भी होता है.
मोदक और लड्डू का ही भोग लगता है
चिंतामन गणेश का ये मंदिर देश के प्राचीन मंदिरों में सबसे पुराना मंदिर माना जाता है. यहां गणेश जी को मोदक और लड्डू का ही भोग लगता है. मान्यता है कि बप्पा के इन तीनों आलौकिक रूपों का जो भी भक्त दर्शन करता है, बप्पा उसके सारे दुख हर लेते हैं. चिंतामन गणेश चिंताओं को दूर करते हैं, इच्छामन गणेश इच्छाओं को पूर्ण करते हैं, सिद्धिविनायक गणेश भक्तों को रिद्धि-सिद्धि देते हैं.
मंदिर से जुड़ी है कथा
उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है. ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के स्वर्गवास हो जाने के बाद भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता माता के साथ यहां आए थे. भगवान राम ने चिंतामन गणेश की पूजा की, तो लक्ष्मण ने इच्छामन गणेश की पूजा की, जबकि माता सीता ने सिद्धिविनायक गणेश की पूजा की थी. तभी से इस मंदिर में बप्पा के तीनों स्वरूपों में पूजा होती आ रही है. माना जाता है कि पूजा पूरी होने तक माता सीता ने उपवास किया था. पूजा पूरी होने के बाद सीताजी को पानी पिलाने के लिए लक्ष्मण ने अपने बाण से यहां पानी निकाला था. इस कुंड को बापणी कहा जाता है. जो आज भी यहां मौजदू है.