प्रतापगढ़ : खुशियां आने वाली थीं और उधर अनहोनी भी साथ-साथ चली आ रही थी. रफ्तार की जंग में खुशियां थोड़ी पीछे रह गईं और अनहोनी आगे निकल गई. लगा कि जैसे सबकुछ अब खत्म हो गया. खुशियों पर 8 दिसंबर को हादसे का ग्रहण लग गया, लेकिन उसके इरादे और प्यार ने साबित कर दिया कि हादसे की औकात उसके इरादों से बड़ी नहीं थी. अब वह संघर्ष कर रहा है और इंतजार कर रहा है कि उसका प्यार अपने पैरों पर चलकर उसके घर तक पहुंचे.
जब रंगों से सजने वाली थी जिंदगी…
जिंदगी जब रंगों से सजने वाली थी तभी आरती को लगा कि जैसे उसकी दुनिया में अंधेरा छा गया हो. बारात आने के चंद घंटों पहले ही वह छत से गिर गई और रीढ़ की हड्डी टूट गई. डॉक्टर ने भी कह दिया कि आरती फिलहाल अपने पैरों पर नहीं चल सकती. उसे महीनों या फिर बरसों इंतजार करना होगा, लेकिन दूल्हे अवधेश को इसकी परवाह नहीं थी. उसने तय मुहूर्त पर ही आरती की मांग में सिंदूर डालते हुए अनहोनी को चुनौती दी और आरती को अपना बना लिया. रस्म-रिवाज के वक्त सभी की आंखें नम थीं.
बचपन में ही पिता को खो चुके