हैदराबाद : पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में और गैर-जीवाश्म ईंधन के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने और जैव ईंधन क्षेत्र में सरकार द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों को उजागर करने के लिए विश्व जैव ईंधन दिवस हर साल 10 अगस्त को मनाया जाता है. भारत के पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा साल 2015 से यह दिवस मनाया जा रहा है.
10 अगस्त का महत्व
विश्व जैव ईंधन दिवस 10 अगस्त को मनाए जाने का खास महत्व है. इस दिन 1893 में सर रुडॉल्फ डीजल (डीजल इंजन के आविष्कारक) ने पहली बार मूंगफली के तेल से मैकेनिकल इंजन को सफलतापूर्वक चलाया था. उनके शोध प्रयोग ने भविष्यवाणी की थी कि अगली शताब्दी में वनस्पति तेल विभिन्न यांत्रिक इंजनों को ईंधन देने के लिए जीवाश्म ईंधन का स्थान लेने जा रहा है. इस प्रकार इस असाधारण उपलब्धि के लिए विश्व जैव ईंधन दिवस हर साल 10 अगस्त को मनाया जाता है.
भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की प्रौद्योगिकी सहयोग कार्यक्रम में 25वें सदस्य के रूप में शामिल हो गया है. इस कार्यक्रम में शामिल होने का प्राथमिक उद्देश्य उत्सर्जन में कमी लाने और कच्चे तेल के आयात को कम करना और उन्नत जैव ईंधन के बाजार को सुविधा प्रदान करना है.
बायोएनर्जी पर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का प्रौद्योगिकी सहयोग कार्यक्रम उन देशों के बीच सहयोग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मंच है, जो एक-दूसरे के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान को बेहतर बनाते हैं. जिनके पास जैव अनुसंधान विकास के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम हैं.
भारत सरकार ने बायोएनर्जी सहयोग पर 25 जनवरी 2020 को ब्राजील सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. समझौता ज्ञापन में जैव ईंधन, जैव प्रौद्योगिकी और बायोगैस आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान की गई है.
जैव ईंधन क्या है?
जैव ईंधन अक्षय संसाधनों से उत्पादित ईंधन है जैसे कि कृषि, वानिकी, वृक्ष आधारित तेल, अन्य गैर-खाद्य तेलों से प्राप्त बायोडिग्रेडेबल उत्पाद, अपशिष्ट और अवशेष. इनसे प्राप्त तेल या तो जीवाश्म ईंधन की जगह इस्तेमाल किया जाता है या पेट्रोल डीजल के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है.
जैव ईंधन के प्रमुख प्रकार
बायो-एथेनॉल - इसे किण्वन प्रक्रिया यानी फर्मन्टेशन प्रक्रिया का उपयोग करके मकई और गन्ने से प्राप्त किया जाता है.
बायो-डीजल - यह सोयाबीन तेल या ताड़ के तेल, वनस्पति, अपशिष्ट तेलों और पशु वसा से प्राप्त होता है, जिसे 'ट्रांससेस्टरिफिकेशन' कहा जाता है.
बायो-गैस - यह जानवरों और मनुष्यों के सीवेज जैसे कार्बनिक पदार्थों के अपघटन द्वारा निर्मित होती है. इसका उपयोग आमतौर पर हीटिंग, बिजली और ऑटोमोबाइल के लिए किया जाता है.
बायो-ब्यूटेनॉल - यह स्टार्च के फर्मन्टेशन से निर्मित होता है. ब्यूटनॉल में ऊर्जा सामग्री अन्य गैसोलीन विकल्पों में सबसे अधिक है. उत्सर्जन को कम करने के लिए इसे डीजल में जोड़ा जा सकता है.
बायो-हाइड्रोजन - बायो गैस की तरह बायो हाइड्रोजेन का निर्माण कई प्रक्रियाओं जैसे पाइरोलिसिस, गैसीकरण या जैविक किण्वन के उपयोग से किया जा सकता है. यह जीवाश्म ईंधन का सही विकल्प हो सकता है.
जैव ईंधन का वर्गीकरण
पहली पीढ़ी - इस श्रेणी में पारंपरिक, अच्छी तरह से स्थापित प्रक्रियाओं से उत्पादित जैव ईंधन शामिल हैं. ये आम तौर पर गन्ने, अनाज या बीजों से बनाए जाते हैं. फर्स्ट जेनरेशन जैव ईंधन में बायो लाचल्स, बायो डीजल, वनस्पति तेल, बायो एथर्स, बायो गैस शामिल हैं.
दूसरी पीढ़ी - ये गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होते हैं जो खाने योग्य नहीं होते हैं और अपशिष्ट के रूप में माने जाते हैं. जैसे- भूसी, लकड़ी के चिप्स और फलों की खाल. उदाहरण के लिए सेलुलोज इथेनॉल और बायो डीजल.
तीसरी पीढ़ी - ये गैर कृषि योग्य भूमि का उपयोग करके बनाया गया जैव ईंधन है जो एकीकृत प्रौद्योगिकियों पर आधारित है. जो फीडस्टॉक के साथ-साथ ईंधन का उत्पादन करती है. उदाहरण के लिए ब्यूटनॉल.
चौथी पीढ़ी - इस श्रेणी में जैव ईंधन को गैर कृषि योग्य भूमि का उपयोग करके बनाया जा सकता है. इस तकनीक का उद्देश्य सीधे उपलब्ध सौर ऊर्जा को ईंधन के रूप में परिवर्तित करना है, जो कि सस्ते और व्यापक रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करती है.
जैव ईंधन के लाभ
- बायो-फ्यूल्स बायो-मास से उत्पन्न होते हैं और इसलिए अक्षय होते हैं
- बायो-फ्यूल का निर्माण फसल अपशिष्ट, खाद्य और अन्य उत्पादों सहित कई प्रकार की सामग्रियों से किया जा सकता है.
- जैव ईंधन उतना कार्बन नहीं छोड़ता है जितना कि जीवाश्म ईंधन. जो उर्वरक जैव ईंधन में उपयोग किए जाते हैं वे ग्रीनहाउस उत्सर्जन को जन्म देते हैं. जैव ईंधनों के उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
- जैव ईंधन स्थानीय रूप से उत्पादित किया जा सकता है जो ईंधन सुरक्षा प्रदान करता है. विदेशी ईंधन स्रोतों पर निर्भरता कम करके, देश अपने ऊर्जा संसाधनों की रक्षा कर सकते हैं और उन्हें बाहरी प्रभावों से सुरक्षित बना सकते हैं.
- जैव ईंधन उत्पादन से उपयुक्त जैव ईंधन फसलों की मांग भी बढ़ेगी, जिससे कृषि उद्योग को आर्थिक प्रोत्साहन मिलेगा. ग्रामीण क्षेत्रों में जैव ईंधन विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने से नए रोजगार को बढ़ावा मिलेगा.
जैव ईंधन के नुकसान
- जीवाश्म ईंधन जैव ईंधन की तुलना में अधिक कुशल हैं
- जैव ईंधन का उत्पादन महंगा है.
- बायो-फ्यूल फसलों के लिए उपयोग किए जाने वाले अत्यधिक क्रॉपलैंड भोजन की लागत को प्रभावित कर सकते हैं और खाद्य की कमी की ओर ले जा सकते हैं.
- जैव ईंधन की फसलों की उचित सिंचाई के लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है.
भारत में जैव ईंधन का विकास
1975 - भारत ने पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित करने की व्यवहार्यता की जांच शुरू की. इसके लिए छह तकनीकी समितियों और चार अध्ययन समूहों की स्थापना की गई थी.
1980 - इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने 15 यात्री कारों पर परीक्षण किया.
2002 - सरकार ने नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 5% इथेनॉल के मिश्रण को 0.75 रुपये एक्साइज ड्यूटी में छूट के साथ अनिवार्य किया. जैव ईंधन के विकास पर एक समिति भी गठित की गई.
2003 - समिति ने पेट्रोल के साथ इथेनॉल के सम्मिश्रण के कार्यक्रम को मजबूत करने की सिफारिश की. इस बीच राष्ट्रीय ऑटो ईंधन नीति ने जैव ईंधन वाहनों के व्यवसायीकरण की सिफारिश की.
2004 - गुड़ की फीडस्टॉक आपूर्ति से संबंधित समस्याओं ने भारत सरकार को पेट्रोल में इथेनॉल के सम्मिश्रण को निलंबित करने पर मजबूर किया.
2005 - चीनी और गुड़ उत्पादन को बढ़ावा देने पर 2005 में इथेनॉल कार्यक्रम में नए सिरे से रुचि पैदा हुई. सरकार ने तेल कंपनियों द्वारा इथेनॉल का खरीद मूल्य 18.25 रुपये प्रति लीटर तय किया.
2006 - सरकार ने बायो-डीजल खरीद नीति की घोषणा की. तेल कंपनियों के लिए खरीद मूल्य 25 रुपये प्रति लीटर तय किया गया.
2007 - राष्ट्रीय जैव ईंधन मसौदा नीति प्रकाश में आई. पोंगामिया और जटरोफा पौधों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने वाला एक जैव ईंधन मिशन भी लॉन्च किया गया.
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018
सरकार ने 4 जून 2018 को जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति को अधिसूचित किया. इस नीति ने 2030 में पेट्रोल में इथेनॉल के 20% सम्मिश्रण और पूरे देश में डीजल में 5% सम्मिश्रण बायो-डीजल प्राप्त करने के संकेत दिए हैं. सम्मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक वर्ष में 500 करोड़ लीटर बायो-डीजल की आवश्यकता होती है.
सरकार आयात निर्भरता को कम करने, रोजगार पैदा करने, किसानों को बेहतर पारिश्रमिक प्रदान करने, बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने आदि के व्यापक उद्देश्यों के साथ जैव ईंधन को बढ़ावा दे रही है.
इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किए गए महत्वपूर्ण उपायों में गन्ने के रस और चीनी / चीनी सिरप से इथेनॉल के उत्पादन को प्रोत्साहित करना है.
सरकार द्वारा पहल
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की अध्यक्षता में 20 अप्रैल 2020 को NBCC (राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति) की बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें यह अनुमोदित किया गया था कि भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध अधिशेष चावल को अल्कोहल आधारित हैंड सेनिटाइजर बनाने में उपयोग के लिए इथेनॉल में परिवर्तित किया जा सकता है और इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के लिए मिश्रित किया जा सकता है.
जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पहल
पेट्रोलियम विभाग ने सफलतापूर्वक 2जी इथेनॉल विकसित किया और तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को तकनीक हस्तांतरित की. जैव ईंधन के उत्पादन के लिए स्वदेशी सेलुलोलिटिक एंजाइम विकसित किया. सूक्ष्मजीव शैवाल आधारित सीवेज उपचार प्रौद्योगिकी का भी प्रदर्शन किया.