मुंबई : पूर्व केंद्रीय मंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने महामारी के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आर्थिक सुधारों के लिए किए गए फैसलों पर ईटीवी भारत से खास बातचीत की. साथ ही उन्होंने अन्य मुद्दों पर भी अपना पक्ष रखा.
सवाल - महाराष्ट्र में एक तरफ कोरोना रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और दूसरी तरफ विपक्षी नेता स्थिति को नियंत्रित नहीं करने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं. इस राजनीतिक अंतर्विरोध के बारे में आप क्या कहेंगे?
जवाब -राज्य में भाजपा के नेता अभी भी विश्वास नहीं करते हैं कि वह अब सत्ता से बाहर हैं. वह सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रहे हैं. वह लोगों में अफवाह फैला रहे हैं कि सरकार महामारी को नियंत्रित करने में विफल है. उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी फिर से सत्ता में आएगी.
भाजपा के सांसद नारायण राणे ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग की है. भाजपा अगर महामारी के दौरान सत्ता को जब्त करने की कोशिश करती है, तो जनता इसे पसंद नहीं करेगी. हम मानवीय संकट के लिए मजदूरों के लिए अभियान चला रहे हैं.
देखें पृथ्वीराज चव्हाण से हुई खास बातचीत सवाल - केंद्रीय वित्त मंत्री ने राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान की थी. इसके बाद विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को जरूरत से ज्यादा धन प्राप्त हुआ है. इसके बाद राज्य सरकार के मंत्रियों ने दावा किया कि पैसा अभी तक नहीं आया है. इसकी असलियत क्या है?
जवाब - केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का विज्ञापन किया. इसमें से मात्र दो लाख करोड़ दिए जाएंगे, बाकी का आंकड़ा सिर्फ एक बबल है. इनमें से ज्यादातर रकम कर्ज के रूप में है.
वर्तमान में राज्य को अपना जीएसटी धन प्राप्त करने की आवश्यकता है. केंद्रीय विचलन कर का पैसा सीधे किसानों और छोटे उद्यमियों के बैंक अकाउंट में पहुंचाया जाना चाहिए. इसके लिए कांग्रेस ने स्पीक-अप भारत अभियान शुरू किया है.
केंद्र सरकार राज्य को जीएसटी का हिस्सा देने के लिए सहमत हो गई है. हालांकि, इस साल आय कम होने के कारण यह आंकड़ा पर्याप्त नहीं है. अब आपको व्यवसाय शुरू करने के लिए नकदी की आवश्यकता है, लेकिन केंद्र ने कर्ज मुहैया कराया. केंद्र सरकार ने राज्यों की जिम्मेदारी से किनारा कर लिया है.
सवाल - क्या आपको लगता है महाविकास अघाड़ी सरकार महामारी को संभालने में विफल रही है
जवाब - महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे जैसे घने शहर हैं. बड़े शहरों को संभालना सरकार और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है. इस पर सरकार काम कर रही है. डब्यूएचओ ने 11 मार्च को कोरोना वायरस को महामारी घोषित की. केंद्र ने 23 मार्च से लॉकडाउन लागू किया. इस बीच सरकार प्रयोगशालाओं को वापस भेजने और रसद की व्यवस्था करने की योजना बना रही थी, लेकिन इसका परिणाम असफल रहा.
मुंबई हवाई अड्डा प्रतिदिन 16 हजार यात्रियों को संभालता है. डब्ल्यूएचओ द्वारा 11 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के बाद भी एयरलाइन बंद नहीं हुई. इसके चलते मुंबई में बड़े पैमाने पर कोरोना का प्रसार हुआ. अगर केंद्र ने सही समय पर यह फैसला लिया होता, तो मुंबई में यह स्थिति पैदा नहीं होती. विदेशी भी संगरोध में नहीं थे. हवाई अड्डे के लाखों लोगों ने कोरोना फैलाया और इसका झटका महाराष्ट्र में पड़ा.
सवाल - क्या राज्य और केंद्र सरकार मजदूरों के लिए ट्रेन भेजने की राजनीति से बच सकते थे?
जवाब - केंद्र द्वारा लिए गए रेलवे के फैसले के बारे में न्यायिक जांच होनी चाहिए. 40 ट्रेनें कार्यस्थल पर कैसे जा सकती थीं. यह महाराष्ट्र सरकार को मुश्किल में डालने की साजिश है. रेलवे कार्यक्रम की योजना पहले से बनाई जा सकती थी, लेकिन मोदी सरकार ऐसा करने में नाकाम रही. श्रमिकों के सभी यात्रा खर्चों को केंद्र द्वारा वहन किया जाना था, लेकिन सरकार ऐसा करने में विफल रही और केंद्र ने राज्य सरकार पर उंगली उठाई.
सवाल - श्रामिक रेल में यात्रा के दौरान कई मजदूरों की मौत हो गई. इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
जवाब -बुकिंग शुरू होने के बाद रेलवे प्रशासन ने मजदूरों यात्रियों से भोजन और पानी के लिए 50 रुपए ज्यादा लिए, लेकिन ट्रेनों में खाने के पैकेट नहीं बांटे गए. एक वक्त का भोजन भी नहीं दिया गया.