लेह : भारत के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षाविदों में से एक सोनम वांगचुक ने चीन से तिब्बत की आजादी के समर्थन में फिर आवाज उठाई है. उनका मानना है कि चीनी उत्पादों के खिलाफ 'वॉलेट पावर' का उपयोग करने का यह भी एक कारण है.
53 वर्षीय वांगचुक ने लेह में एक साक्षात्कार में बीजिंग के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के कारणों को भी स्पष्ट किया. वांगचुक द्वारा 'चीनी उत्पादों का बहिष्कार' अभियान ने मई में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद भारतीय नागरिकों से भारी समर्थन प्राप्त किया है.
एक इंजीनियर से शिक्षाविद् बने वांगचुक देश के लाखों छात्रों के लिए एक प्रेरणा हैं. वह एक बड़े शहर या विदेश में करियर बनाने के विकल्प को त्यागकर लेह के एक गांव में सरल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीन 60 लाख तिब्बतियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.
उन्होंने कहा कि किसी भी ऐसे स्रोत को छोड़ देना चाहिए, जो दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाला हो. उदाहरण के लिए, लोगों ने उन उत्पादों को छोड़ दिया, जो बाल श्रम द्वारा बनाए गए थे क्योंकि इसमें बाल अधिकारों का उल्लंघन भी शामिल था, भले ही उत्पाद सस्ते हों.
वांगचुक रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं और उन्होंने तीन दशक पहले लद्दाख के छात्रों के शैक्षिक और सांस्कृतिक आंदोलन की स्थापना की थी. उन्होंने पूछा, अगर आप बाल अधिकारों और जानवरों के अधिकारों की परवाह करते हैं, तो फिर 60 लाख तिब्बतियों और 1.1 करोड़ उइगरों (चीन के अधीन) के मानवाधिकारों के बारे में क्या?
उन्होंने कहा, पूरी दुनिया को चीन को नीचे लाने के लिए उन्हीं वॉलेट्स का इस्तेमाल करने की जरूरत है, जिसने चीन को काफी शक्तिशाली बनाया है और तिब्बत जैसे देशों को, जिन पर चीन का अवैध कब्जा हो गया है, आजादी मिल सके. केवल तिब्बती और उइगर ही नहीं, मैं कहूंगा कि 1.4 अरब चीनी लोग भी वहां बंधुआ मजदूर ही हैं. इसलिए निश्चित रूप से तिब्बत ही नहीं, बल्कि चीनी लोगों को भी आजादी चाहिए.
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