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सोनम वांगचुक बोले- तिब्बतियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा चीन

भारत के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षाविदों में से एक सोनम वांगचुक ने चीन से तिब्बत की आजादी का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि चीन 60 लाख तिब्बतियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.

सोनम वांगचुक ने तिब्बत की आजादी का समर्थन किया
सोनम वांगचुक ने तिब्बत की आजादी का समर्थन किया

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Published : Jul 29, 2020, 7:10 PM IST

लेह : भारत के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षाविदों में से एक सोनम वांगचुक ने चीन से तिब्बत की आजादी के समर्थन में फिर आवाज उठाई है. उनका मानना है कि चीनी उत्पादों के खिलाफ 'वॉलेट पावर' का उपयोग करने का यह भी एक कारण है.

53 वर्षीय वांगचुक ने लेह में एक साक्षात्कार में बीजिंग के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के कारणों को भी स्पष्ट किया. वांगचुक द्वारा 'चीनी उत्पादों का बहिष्कार' अभियान ने मई में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद भारतीय नागरिकों से भारी समर्थन प्राप्त किया है.

एक इंजीनियर से शिक्षाविद् बने वांगचुक देश के लाखों छात्रों के लिए एक प्रेरणा हैं. वह एक बड़े शहर या विदेश में करियर बनाने के विकल्प को त्यागकर लेह के एक गांव में सरल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीन 60 लाख तिब्बतियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.

उन्होंने कहा कि किसी भी ऐसे स्रोत को छोड़ देना चाहिए, जो दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाला हो. उदाहरण के लिए, लोगों ने उन उत्पादों को छोड़ दिया, जो बाल श्रम द्वारा बनाए गए थे क्योंकि इसमें बाल अधिकारों का उल्लंघन भी शामिल था, भले ही उत्पाद सस्ते हों.

वांगचुक रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं और उन्होंने तीन दशक पहले लद्दाख के छात्रों के शैक्षिक और सांस्कृतिक आंदोलन की स्थापना की थी. उन्होंने पूछा, अगर आप बाल अधिकारों और जानवरों के अधिकारों की परवाह करते हैं, तो फिर 60 लाख तिब्बतियों और 1.1 करोड़ उइगरों (चीन के अधीन) के मानवाधिकारों के बारे में क्या?

उन्होंने कहा, पूरी दुनिया को चीन को नीचे लाने के लिए उन्हीं वॉलेट्स का इस्तेमाल करने की जरूरत है, जिसने चीन को काफी शक्तिशाली बनाया है और तिब्बत जैसे देशों को, जिन पर चीन का अवैध कब्जा हो गया है, आजादी मिल सके. केवल तिब्बती और उइगर ही नहीं, मैं कहूंगा कि 1.4 अरब चीनी लोग भी वहां बंधुआ मजदूर ही हैं. इसलिए निश्चित रूप से तिब्बत ही नहीं, बल्कि चीनी लोगों को भी आजादी चाहिए.

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इस आलोचना के जवाब में कि चीनी सामानों के बहिष्कार से भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी और नौकरियों का नुकसान हो सकता है, शिक्षाविद् ने कहा, 'यह कहना हास्यास्पद है कि हम चीनी सामान बेचने से रोजगार पाते हैं, उन्हीं उत्पादों को आज से 10 साल पहले भारत में ही बनाने से 10 गुना अधिक रोजगार मिलता था.'

उन्होंने खिलौने, साइकिल, जूते, शर्ट जैसे उत्पादों का जिक्र किया, जिनका भारतीय उत्पादन करते रहते थे. प्रमुख समाज सुधारक ने कहा, 'उनके सभी रोजगार चीन में चले गए, लेकिन हम इसके बारे में चिंतित नहीं हैं. हम किसी और के उत्पादों के व्यापार से उत्पन्न कुछ नौकरियों के बारे में चिंतित हैं.'

वांगचुक ने इसे एक विकृत रूप में बताते हुए कहा, 'हम भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं. हमें लगता है कि हमने हमेशा चीनी सामान का आयात किया है और कभी कुछ नहीं बनाया है.' उन्होंने चीन पर निर्भर न रहते हुए अपने देश में ही उत्पादन पर जोर दिया और कहा, 'हम खुद के लिए चीजें बनाने के साथ ही शायद दुनिया के लिए भी ऐसा कर सकते हैं.'

उन्होंने कहा, 'अगर हम वैश्विक स्तर पर जाना चाहते हैं, तो पूरी दुनिया वैकल्पिक विनिर्माण की तलाश में है. अतीत के विपरीत, आज दुनियाभर के लोग चीन से सावधान हैं और उसके विस्तारवादी कार्यों के बारे में आशंकित भी हैं. दुनियाभर के लोग, विशेष रूप से सबसे उन्नत देश, भारत जैसे देशों को विकल्प प्रदान करने की सोच रहे हैं.'

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भारतीय दार्शनिक विचारों के प्रशंसक शिक्षाविद् ने कहा कि वास्तव में दुनिया को भारत का अनुकरण करना चाहिए. उन्होंने कहा कि दुनिया को कुछ हद तक इस बारे में भी देखना चाहिए कि भारत कैसा है. यह बहुत लालची नहीं है और बहुत भौतिकवादी नहीं है.

हालांकि उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भारत को आर्थिक विकास और समृद्धि के एक निश्चित स्तर तक पहुंचना है, जहां लोग भूख और बीमारी से मुक्त हों, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि एक हद के बाद धन का अधिक अर्थ नहीं रह जाता है.

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