जयपुर : संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के 884 करोड़ रुपए के घोटाले में अब राजस्थान एसओजी(SOG )केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उनकी पत्नी सहित तीन लोगों के खिलाफ जांच करेगी. कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण की जांच करने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने यह आदेश गुमान सिंह व अन्य की ओर से दायर रिवीजन प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए.
राजस्थान एसओजी संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के घोटाले की जांच पहले से ही कर रही है. इस प्रकरण में विक्रम सिंह सहित अन्य लोगों को एसओजी गिरफ्तार भी कर चुकी है. अब कोर्ट ने एसओजी को कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उनकी पत्नी, साथ ही राजेंद्र बाहेती और केवल चंद डगलिया के खिलाफ जांच करने के आदेश दिए हैं.
क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाला एसओजी ने करोड़ों रुपए के घोटाले में साल 2019 में 32 नंबर एक FIR दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाए गए थे कि शिकायतकर्ता की तरफ से लाखों रुपए सोसायटी में लगाए गए थे और यह पैसा कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके परिवार जनों की कंपनियों में लगाया गया. इसके साथ ही पीड़ितों द्वारा निवेश किया गया पैसा गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके साथियों के अकाउंट में जमा होना बताया गया.
निचली अदालत का आदेश रद्द...
इस पूरे प्रकरण में कार्रवाई करते हुए एसओजी ने कुछ लोगों को गिरफ्तार तो किया, लेकिन गजेंद्र सिंह सहित अन्य लोगों के खिलाफ जांच नहीं की, जिस पर परिवादी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिसके बाद गुरुवार को कोर्ट ने परिवादी की अपील पर सुनवाई करते हुए एसओजी को गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही अदालत में निचली अदालत के उस आदेश को भी रद्द कर दिया है, जिसके तहत अदालत में प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया था.
प्रार्थना पत्र में अधिवक्ता अजय कुमार जैन ने अदालत को बताया कि प्रार्थियों ने संजीवनी सोसाइटी में ऐसे निवेश किए थे. इस राशि का आरोपियों ने छल करते हुए दुरुपयोग किया है. प्रार्थी और उस जैसे 50 हजार से अधिक दूसरे निवेशकों से धन प्राप्त कर इस राशि को नवप्रभा बिल्टेक, ल्युसिड फार्मा, जनक कंस्ट्रक्शन और अरिहंत ट्रेएटर के साथ ही उनके कर्ता-धर्ता नवनंद कवर, मोहन कवर, राजेंद्र बाहेती, केवलचंद डगलिया और गजेंद्र सिंह को अंतरित की गई. जिन्होंने इस राशि से अपनी कई बिल्डिंग बनाई और इथोपिया में जमीन खरीदी.
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प्रार्थना पत्र में कहा गया कि यह बात एसओजी के अनुसंधान में आने के बाद भी न तो इन लोगों से अनुसंधान किया गया और ना ही इनकी संपत्तियों को जब्त किया गया. परिवादी की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि गजेंद्र सिंह की पार्टनरशिप की कंपनी ने संजीवनी सोसायटी के संचालन विक्रम सिंह और उसकी पत्नी के नाम कंपनी के अंशों का हस्तांतरण किया था. विक्रम सिंह ने इसके लिए संजीवनी सोसायटी के निवेशकों के धन को काम में लिया था.