कोरोना वायरस की खबरों के बीच भारत और इंडोनेशिया अपने मतभेदों को दूर करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. करीब 15 दिन पहले इंडोनेशिया में भारत के राजदूत प्रदीप कुमार रावत को वहां पर तलब किया गया था. इसमें दिल्ली हिंसा में मारे गए मुस्लिमों पर चिंता व्यक्त की गई थी. उसके बाद इंडोनेशिया के कई कट्टरपथी मुस्लिम संगठनों- एफपीआई, जीएनपीएफ और पीए 212 ने भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन भी किया था. इन तीनों संगठनों के अध्यक्षों द्वारा हस्ताक्षरित एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को रद करने की अपील की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि इस कानून का मुसलमानों के खिलाफ दुरुपयोग किया जाएगा.
हालांकि, इंडोनेशियाई सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि भारतीय राजदूत को केवल 'संदेश के बारे में' चिंता व्यक्त करने के लिए बुलाया गया था. और जकार्ता का मानना है कि भारत अपने घरेलू मुद्दों के आसपास के तनावों को दूर करने में सक्षम होगा. इंडोनेशिया के अधिकारी ने कहा कि सिविल सोसाइटी और कई संस्थाओं ने सीएए को लेकर चिंताएं जाहिर की हैं, उम्मीद है कि यह संदेश भारत सरकार तक चला गया होगा. उन्होंने कहा कि इंडोनेशिया को भरोसा है कि हम दोनों देश बहुलवादी और लोकतांत्रिक देश हैं, लिहाजा हम लोग इसे कोई मुद्दा बनने नहीं देंगे.
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दिल्ली हिंसा के बीच एक खबर आई थी, मुहम्मद जुबैर की. कथित तौर पर उसे सिर्फ इसलिए टारगेट किया गया कि उसने खास टोपी लगा रखी थी और उसके चेहरे पर दाढ़ी थी. संभवतः इससे इंडोनेशियाई राजनयिकों की चिंताएं बढ़ीं होंगी.
इंडोनेशियाई सूत्रों का कहना है कि इस शुक्रवार तक भारतीय दूतावास के बाहर चलने वाले आंदोलन खत्म हो जाएंगे. भारतीय दूतावास के बाहर 1100 इंडोनेशियाई पुलिस बल को तैनात किया गया है. ट्रैफिक में भी बदलाव किया गया है, ताकि बड़ी भीड़ यहां इकट्ठा ना हो सके. इस तरह से सुरक्षा इंतजाम सिर्फ अमेरिकी दूतावास को ही दी जाती है, क्योंकि वहां के कट्टरपंथी लोग फिलिस्तीन के मुद्दे पर अमेरिकी दूतावास के बाहर प्रदर्शन करते रहते हैं.
ऐसी उम्मीद की जा रही है नई दिल्ली, इंडोनेशिया में सबसे प्रभावशाली मुस्लिम संगठन इंडोनेशियन उलेमा काउंसिल के साथ बात कर सकता है. इस संगठन ने अब तक भारत के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया है. हालांकि, इसने एक बयान जारी कर संयुक्त राष्ट्र को एक फैक्ट फाइंडिंग टीम भारत भेजने की अपील की थी. इसमें यह भी कहा गया था कि भारत अंतरराष्ट्रीय कानून और परंपराओं का पालन करते हुए अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए कदम उठाए. इस चिट्ठी में सीएए को भेदभावपूर्ण बताया गया है. उनके कथन में जम्मू-कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्पों को मानने की भी बात कही गई थी. आगे इसमें भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की बात कही गई है. कहा ये भी गया है कि अगर दिल्ली भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ अपने रवैये को नहीं बदलता तो भारत से संबंध तोड़ लिए जाएं.
पिछले कुछ सालों में इस्लामिक संगठनों के बीच इंडोनेशिया कश्मीर को लेकर संवेदनशील और भारत के पक्ष में सहानुभूतिपूर्वक राय देता रहा है. मसूद अजहर के मुद्दे पर इंडोनेशिया ने यूएनएससी की सूची का समर्थन किया. पुलवामा हमले की निंदा करने वालों में इंडोनेशिया पहले कुछ देशों में शामिल था. इंडोनेशिया में हो रहे विरोध को बहुत अधिक हवा नहीं दी गई है.
भारतीय राजदूत इस सप्ताह इंडोनेशिया के उप राष्ट्रपति से मिलने वाले हैं. उप राष्ट्रपति एमयूआई के सदस्य भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि कुछ सकारात्मक उपलब्धियां होंगीं. भारत और इंडोनेशिया ने इंटर फेथ डायलॉग की शुरुआत 2018 में की थी. इसे हर साल मिलना था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उम्मीद की जा रही है कि भारत इस साल इस बैठक को आयोजित करेगा और वहां पर आपसी संबंधों को बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है.
हालांकि, जिस तरीके से कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया में बेचैनी है, सबकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और इंडोनेशिया के राजनीतिक, सुरक्षा और मानवाधिकार मंत्री से उनकी बातचीत होने के आसार बहुत कम हैं. द्विपक्षीय संबंधों को लेकर फिर भी प्रयास किए जा रहे हैं. इंडोनेशियन ऑथोरिटी का कहना है कि भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने का सतत प्रयास जारी है.
इस बीच एक ऐसी खबर आई है, जिसका इंडोनेशिया ने जोरदार खंडन किया है. भारतीय मीडिया में ये खबरें आई थी कि इंडोनेशियन एनजीओ एक्ट (आक्सी सीपैट टंग्गाप) ने दिल्ली में दंगा कराने के लिए पैसे दिए थे. खुफिया विभाग की सूचनाओं का हवाला दिया गया था. एक्ट ने इन खबरों का खंडन किया है. सूत्रों का कहना है कि भारत ने अब तक औपचारिक तौर पर इसे नहीं उठाया है और ना ही कोई सबूत सामने रखे गए हैं.
(स्मिता शर्मा)