शिमला : 1980 के दशक में अदरक उत्पादन में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला पूरे एशिया में मशहूर था. जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से ही करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर ली है.
इसकी मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है. यहां के किसानों को अपनी फसलों को उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली की मंडियों में बेचना पड़ता है. ऐसे में किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस वजह से किसानों का अदरक की खेती मोहभंग होने लगा है.
वहीं, ताजा हालतों के बारे में बात करें तो इस बार मौसम की बेरुखी और फसलों में सड़न रोग ने किसानों के मनोबल को चूर-चूर कर दिया है. पांवटा साहिब में 237 हेक्टेयर में अदरक की खेती की जाती है, लेकिन अदरक में सड़न रोग लगने से उत्पादन 50 प्रतिशत से कम हो चुका है. ऐसे में जिले के पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बंद कर दी है.
सड़न रोग और जंगली जानवर से बचाव जरूरी
ग्रामीणों का कहना है कि अदरक को बंदर एवं जगंली जानवरों से बचाना जहां मुश्किल हो रहा है वहीं फसल में सड़न रोग की वजह से पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बिल्कुल बंद कर दी है. अगर ट्रांस गिरी क्षेत्र की बात की जाए तो यहां सबसे ज्यादा अदरक की पैदावार होती रही है, लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी से पैदावार कम हुई है.
सरकार गंभीरता से करें कार्य
बुद्धिजीवियों का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र के लोग अदरक की फसल पर ही अपना गुजारा करते थे. पहाड़ी क्षेत्रों मे रहने वाला हर किसान कोयतल अदरक का उत्पादन करता था, लेकिन आज के समय में इन क्षेत्रों में अदरक की पैदावार कम हो गई है, अगर सरकार इस पर गंभीरता से कार्य करे तो दोबारा इन इलाकों में अदरक की खेती शुरू हो सकती है...
सही बीज का करें चयन
कृषि अधिकारी इंद्रा चौहान का कहना है किसानों द्वारा सही बीज का चयन भी इसके उत्पादन पर प्रभाव डालता है. यदि किसान बीज का चयन सही तरीके से करे तो अदरक की पैदावार अच्छी हो सकती है.
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