नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ और1999 के कारगिल युद्ध के बीच बहुत सारी समानताएं हैं. कारिगल युद्ध में पाकिसतान सेना ने जिस तरह रणनीतिक तौर पर अहम मानी वाली जगहों पर कब्जा किया था, वैसे ही चीन ने गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो क्षेत्रों में कई रणनीतिक स्थानों पर कब्जा कर लिया. इसलिए यह संभावना नहीं है कि लद्दाख से चीनी घुसपैठ बहुत जल्द समाप्त हो जाए.
कारगिल युद्ध की 21 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ईटीवी भारत के कोओर्डिनेटर खुरशीद वानी से बात करते हुए प्रख्यात रक्षा विशेषज्ञ विक्रम जीत सिंह ने यह बात कही.
बता दें कि विक्रम जीत सिंह एकमात्र पत्रकार है जो समुद्र तल से 15,700 फीट ऊपर एक पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के गवाह हैं. उन्होंने उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्र से कारगिल युद्ध की रिपोर्टिंग की थी.
उन्होंने कहा कि जिस तरह कारगिल में तीन मई को बटालिक सेक्टर में पाक सेना की घुसबैठ की सूचना मिली थी, ठीक उसी तरह गालवान क्षेत्र में पांच मई को चीनी घुसपैठ का भी पता चला था.
दोनों मामलों में,सर्दियों के दौरान सैनिकों की गतिविधियां की गई, उन्होंने कहा कि कारगिल के विपरीत, चीनी घुसपैठ में आमने- सामने सीधे टकराव की क्षमता है, जबकि चीन ने 1999 में पाकिस्तान को बैकअप देने से इनकार कर दिया था.
विक्रम जीत ने बताया कि 13 जून 1999 में को जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज ने नई दिल्ली का दौरा किया था, जब वाजपेयी सरकार ने कहा था कि जब तक कि वह नियंत्रण रेखा से हट नहीं जाते तब तक पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत नहीं होगी. हालांकि वर्तमान स्थिति में, भारत ने घुसपैठ को बाहर करने के लिए सैन्य बल लागू नहीं किया है, लेकिन पांच मई, 2020 की यथास्थिति को बहाल करने के लिए राजनीतिक और राजनयिक चैनलों का उपयोग किया जा रहा है.
रक्षा विशेषज्ञ ने कहा कि हालांकि दिलचस्प बात यह कि कारगिल में पहली घुसपैठ का पता पंजाब की तीन रेजिमेंट को चला था, जबकि 15 जून की रात को भी यही रेजिमेंट अन्य रेजिमेंटों के साथ चीन के साथ हुई झड़प में साथ थी.
दिलचस्प बात यह है कि कारगिल और गलवान दोनों ही जगह की जिम्मेदारी तीन इन्फैन्ट्री डिवीजन को दी गई थी.
विक्रम जीत ने कहा कि 1999 में चीन ने पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया था, लेकिन इस बार संभावना है कि इस बार दोनों की मिली भगत शामिल हो.