वाराणसी: पूरे एक महीने तक अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना करने के बाद अब लोग शक्ति की उपासना करने के लिए तैयार हैं. 16 अक्टूबर को अधिक मास के खत्म होने के बाद 17 अक्टूबर से माता शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र शुरू हो रहा है. इस बार कोरोना की वजह से काफी बंदिशों के बीच भगवती की आराधना पूरी होगी, लेकिन इस शारदीय नवरात्र में इस बार कुछ ऐसे अद्भुत संयोग भी बन रहे हैं, जो कई साल बाद देखने को मिलेंगे. इसे लेकर क्या है ज्योतिषियों का कहना और कैसे करें मां की कलश स्थापना के साथ देवी की आराधना जानिए.
हर दिन एक अलग योग
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि नवरात्र के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक इस बार कई अद्भुत संयोग बन रहे हैं. नवरात्र के पहले दिन 17 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, दूसरे दिन 18 अक्टूबर को त्रिपुष्कर योग, तीसरे दिन 19 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, चौथे और पांचवें दिन यानी 20 व 21 अक्टूबर को रवि योग और आठवें दिन यानी अष्टमी तिथि को पुनः सर्वार्थ सिद्धि योग मिल रहा है, जो नवरात्र में तंत्र साधना करने वालों के लिए दुर्लभ योग है. इस योग में रात्रि में तंत्र साधना करना विशेष फलदाई होगा और माता की विशेष अनुकंपा भी मिलेगी.
26 अक्टूबर को व्रत करने वाले करेंगे पारण
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर से नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है, जबकि 26 अक्टूबर को दशमी का पर्व मनाया जाएगा. इसके पहले 23-24 अक्टूबर की रात महानिशा पूजन संपन्न होगी और 24 को महाअष्टमी का व्रत रखा जाएगा. 25 अक्टूबर को 11:14 बजे दशमी तिथि लग जाएगी और उदया तिथि का मान करते हुए 26 अक्टूबर को नवरात्र की समाप्ति होगी.
चित्रा नक्षत्र की वजह से इस वक्त करना होगा कलश स्थापन
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर यानी अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र मिल रहा है. धर्म शास्त्र में वर्णित है कि जब चित्रा या वैधृति नक्षत्र हो तब कलश स्थापना नहीं की जाती है. प्रतिपदा के साथ चित्रा का दुर्योग बनना सुबह के वक्त कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त नहीं बता रहा है, लेकिन अभिजीत मुहूर्त की यदि बात की जाए तो 17 अक्टूबर को सुबह 11:38 से लेकर 12:23 बजे दोपहर तक शुभ अभिजीत मुहूर्त मिल रहा है, इस वक्त कलश स्थापन करना उपयुक्त होगा. यदि इस दौरान कोई कलश स्थापना नहीं कर पाता है, तो 2:20 बजे दिन में चित्रा नक्षत्र की समाप्ति के बाद कलश स्थापना की जा सकती है.