नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में यहां शाहीन बाग में चल रहे धरना के मामले में न्यायालय द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने सोमवार को शीर्ष अदालत में सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट पेश की.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के.एम. जोसफ की पीठ के समक्ष अधिवक्ता साधना रामचंद्रन ने यह रिपोर्ट पेश की. न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े के साथ साधना रामचंद्रन को शाहीन बाग में धरना प्रदर्शन कर रहे लोगों से बातचीत के लिए वार्ताकार नियुक्त किया है.
वरिष्ठ वकील महमूद प्राचा ने इस बाबत ईटीवी भारत को बताया, 'आज संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन ने एक रिपोर्ट दाखिल की. विपक्षी पक्ष, जो भाजपा के मालेराम गर्ग हैं, और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस रिपोर्ट की कॉपी मांगी. लेकिन कोर्ट ने उन्हें रिपोर्ट की कॉपी देने से इनकार कर दिया. दूसरी बात, कोर्ट ने हमें, चंद्रशेखर आजाद, वजाहत हबीबुल्लाह और मुख्तार अब्बाद नकवी को एफीडेविट दायर करने के लिए कहा, जो हमने कर दिया है. इसके अलावा हमने उन्हें कॉपी भी सौंपी है.'
पीठ ने कहा कि वह इस रिपोर्ट का अवलोकन करेगी. न्यायालय इस मामले में अब 26 फरवरी को आगे की सुनवाई करेगा.
पीठ ने स्पष्ट किया कि वार्ताकारों की यह रिपोर्ट याचिकाकर्ताओं और केंद्र तथा दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ताओं के साथ इस समय साझा नहीं की जाएगी.
इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही रामचंद्रन ने पीठ से कहा कि उन्हें वार्ताकार की जिम्मेदारी प्रदान करने के लिये न्यायालय की कृतज्ञ हैं और वार्ताकारों के लिये यह बहुत कुछ सीखने का अवसर था जो सकारात्मक था.
पीठ ने कहा, 'इसकी विवेचना करते हैं. हम इस मामले में परसों सुनवाई करेंगे.'
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एक याचिकाकर्ता के वकील ने जब यह कहा कि रिपोर्ट उनके साथ भी साझा की जानी चाहिए तो पीठ ने कहा, 'हम यहां हैं. सभी लोग यहां हैं. पहले हमें इस रिपोर्ट का लाभ लेने दीजिए. रिपोर्ट की प्रति सिर्फ न्यायालय के लिए ही है.'
इससे पहले, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने शीर्ष अदालत से कहा था कि धरना प्रदर्शन शांतिपूर्ण है और धरनास्थल से दूर सड़क पर पुलिस द्वारा 'अनावश्यक रूप से' लगाए गए अवरोधों की वजह से लोगों को आने जाने में परेशानी हो रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता सैयद बहादुर अब्बास नकवी और भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने भी इस मामले में दाखिल अपने संयुक्त हलफनामे में यह दृष्टिकोण व्यक्त किया है. हबीबुल्ला, आजाद और नकवी ने इस मामले में हस्तक्षेप के लिए संयुक्त रूप से आवेदन दाखिल किया है.
शीर्ष अदालत ने इससे पहले कहा था कि यद्यपि लोगों को 'शांतिपूर्ण और वैध तरीके से' विरोध प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है, लेकिन शाहीन बाग में सार्वजनिक सड़क पर अवरोध उसे परेशान कर रहा है क्योंकि यह 'अव्यवस्था की स्थिति' पैदा कर सकता है.
नकवी और आजाद ने अपने संयुक्त हलफनामे में आरोप लगाया है कि मौजूदा सरकार ने अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर हिंसा और गुंडागर्दी के कृत्यों को गलत तरीके से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर थोपने की रणनीति तैयार की है.
हबीबुल्ला ने अपने हलफनामे में कहा है कि प्रदर्शनकारियों ने उनसे कहा है कि वह न्यायालय को इस बात से अवगत कराएं कि वे नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिक पंजी को अपनी भावी पीढ़ी के अस्तित्व के लिए खतरा समझते हुए ही बाध्य होकर यह अपनी असहमति जाहिर कर रहे हैं.
नागरिकता संशोधन कानून और एनआसी के खिलाफ पिछले साल 15 दिसंबर से चल रहे विरोध प्रदर्शन की वजह से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग का रास्ता और ओखला अंडरपास पर प्रतिबंध लगा हुआ है.
इस मामले में भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने भी अलग से शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर शाहीन बाग से इन प्रदर्शनकारियों को हटाने का निर्देश प्राधिकारियों को देने का अनुरोध किया है.