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कोरोना ने बदला सेक्स वर्कर्स के काम का तरीका, बेच रहे पान-मसाला

कोरोना महामारी का असर दुनिया भर के देशों में देखने को मिल रहा है. महामारी संकटकाल में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, तो वहीं कुछ लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं. इसी क्रम में ईटीवी भारत की टीम ने लॉकडाउन के वक्त सेक्स वर्कर्स के हालात जानने की कोशिश की, देखें रिपोर्ट...

sex workers struggle to survive amid corona virus pandemic
सेक्स वर्कर्स पर पड़ रहा कोरोना का असर

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Published : Sep 28, 2020, 11:02 PM IST

वाराणसी :वैश्विक महामारी कोरोना के चलते दुनिया भर में सभी उद्योग-धंधों की रफ्तार करीब थम सी गई है. कोरोना महामारी से अब तक लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. दुनिया भर में करोना संक्रमण के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं. हालांकि कोरोना महामारी से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. कोरोना वायरस के लगातार बढ़ रहे संक्रमण को रोकने के लिए कुछ देशों को आंशिक सफलता भी मिली है. ऐसे माहौल में भारत भी कोरोना महामारी से अछूता नहीं है. वहीं वाराणसी जिले में सेक्स वर्कर्स के हालात को लेकर ईटीवी भारत ने तफ्तीश की और कोरोना काल में इनकी दिक्कतों को जानने का प्रयास किया.

भारत सरकार के लगातार किए जा रहे प्रयासों के बावजूद भी कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में लंबे समय के लिए लॉकडाउन किया गया था, जिसका प्रभाव यह हुआ कि लाखों लोग बेरोजगार हो गए. इसके अलावा पटरी और दिहाड़ी मजदूरों का कामकाज बंद होने से वे दाने-दाने तक के लिए मोहताज हो गए. कोरोना काल के दौरान हुए लॉकडाउन का असर देश के आम से लेकर खास तक किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ा है. वहीं लॉकडाउन का असर सेक्स वर्कर्स पर इस कदर पड़ा कि उन्हें एक पहर की रोटी तक जुटाना मुश्किल हो गया.

कोरोना काल ने बदल दी सेक्स वर्कर्स की जिंदगी.

लोक-लाज के डर से नहीं लेना चाहते सरकारी सुविधाओं का लाभ
ईटीवी भारत की टीम ने सेक्स वर्कर्स के मौजूदा हाल जानने के लिए शिवदासपुर रेड लाइट एरिया का दौरा किया. इस दौरान सेक्स वर्करों से हमारी टीम ने रिहैबिलिटेशन सेंटर में शिफ्ट होने के बारे में भी बात की. इसके जबाव में सेक्स वर्कर्स का कहना था कि उनकी पूरी जिंदगी इन गंदी गलियों में गुजर गई है. अब वे रिहैबिलिटेशन सेंटर में शिफ्ट नहीं होना चाहती हैं. साथ ही उनका कहना है कि अगर वे रिहैबिलिटेशन सेंटर में शिफ्ट हो भी जाएं, तो उन्हें सभ्य समाज नहीं अपनाएगा. सेक्स वर्कर्स की मानें तो रेड लाइट एरिया से दूसरी जगह शिफ्ट होने पर लोग उनके ऊपर तंज कसेंगे, जिससे उनका जीना और भी मुश्किल हो जाएगा.

मकान का किराया नहीं दे पा रहे सेक्स वर्कर
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए बीते दिनों देश भर में लॉकडाउन लागू किया गया था. इस दौरान आमजन को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ा. लॉकडाउन का असर एक ऐसे गुमनाम तबके पर भी प्रभावी रहा, जिसका लोग नाम लेने से भी कतराते हैं. समाज के इस तबके को लोग सेक्स वर्कर, प्रॉस्टिट्यूट आदि नामों से जानते हैं. ईटीवी भारत की टीम से बातचीत के दौरान कई सेक्स वर्कर्स ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनका धंधा ठप हो गया है. वहीं कमाई न होने के चलते उन्हें मकान का किराया देने के साथ ही दो वक्त की रोटी भी जुटाना भारी पड़ रहा है.

धंधा ठप होने से कई सेक्स वर्कर्स छोड़ चुके हैं काम
लॉकडाउन के समय सेक्स वर्कर्स का धंधा करीब पूरी तरह से ठप पड़ चुका है. धंधा कम हो जाने से कई सेक्स वर्कर्स ने अपने पुराने धंधे को बंद कर दिया है और अब वे पान-मसाला बेचकर या फिर अन्य छोटे-मोटे काम कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. बातचीत के दौरान सेक्स वर्कर्स ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले एक दिन में 500 से 1,000 रुपये तक की आमदनी हो जाती थी. वहीं धंधा छोड़ चुके सेक्स वर्कर्स का कहना है कि अब उन्हें इस धंधे में बहुत कम आमदनी होती है, जिसके चलते उन्हें अपने परिवार की परवरिश तक करना मुश्किल हो गया है.

कितनी है सेक्स वर्कर्स की आबादी?
वाराणसी जिले में स्थित मंडुआडीह का शिवदासपुर इलाका रेड लाइट एरिया के नाम से जाना जाता है, जहां अवैध तरीके से देह व्यापार का धंधा चलता है. बताते चलें कि जिले का शिवदासपुर रेड लाइट एरिया दुनियाभर में जाना जाता है. यहां पर रहने वाले सेक्स वर्कर्स कई वर्षों से यह धंधा कर रहे हैं. इस रेड लाइट एरिया में करीब 30 से 40 परिवार रहते हैं, जो देह व्यापार के धंधे में शामिल हैं.

सेक्स वर्कर्स का सहारा बनीं समाजसेवी संस्थाएं
वाराणसी जिले के शिवदासपुर रेड लाइट एरिया में रहने वाले सेक्स वर्कर्स से ईटीवी भारत की टीम ने बातचीत की. इस दौरान कई सेक्स वर्कर्स ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनका धंधा करीब-करीब चौपट हो चुका है. लॉकडाउन के समय उन्हें एक वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया था. ऐसे कठिन समय में कुछ समाजसेवी संस्थाएं रेड लाइट एरिया में आकर खाना बांटती थी, तब कहीं जाकर उनका पेट भरता था.

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